कालीखो से घिरे दीप को न देख
इस लौ को थोड़ा और जगमगाने दे,
दबी हुई थी हवा, अब बहक गई है
रोक मत कदम बहक जाने दे।
ये गरम हवा का झोका ही सही,
दिलो में जमे बर्फ तो गलाने दे।
हर रोज एक नई तस्वीर छपती है
थक जाय नैन पर उसे निहारने दे।
जो ढूंडते अब एक अदद जगह
रौशनी से उनका चेहरा तो नहाने दे।
न्याय की तखत पे बैठे है जो
उनके बदनीयत की बैशाखी अब हटाने दे।
दिलो में घुट रही है धुआ लोगो के
इन्ही चिंगारी से आशियाना जलाने दे।
जो भीर रहे शासक से, सिरफिरे ही सही
नियत से क्या हकीकत तो जान लेने दे।
इस लौ को थोड़ा और जगमगाने दे,
दबी हुई थी हवा, अब बहक गई है
रोक मत कदम बहक जाने दे।
ये गरम हवा का झोका ही सही,
दिलो में जमे बर्फ तो गलाने दे।
हर रोज एक नई तस्वीर छपती है
थक जाय नैन पर उसे निहारने दे।
जो ढूंडते अब एक अदद जगह
रौशनी से उनका चेहरा तो नहाने दे।
न्याय की तखत पे बैठे है जो
उनके बदनीयत की बैशाखी अब हटाने दे।
दिलो में घुट रही है धुआ लोगो के
इन्ही चिंगारी से आशियाना जलाने दे।
जो भीर रहे शासक से, सिरफिरे ही सही
नियत से क्या हकीकत तो जान लेने दे।