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Saturday, 7 March 2015

अब हम चलते है ।

कही कुछ ठिठक गया
जैसे समय, नहीं मैं । 
नहीं कैसे हो सकता
जब समय गतिशील है
फिर कैसे ठिठक गया,
अंतर्विरोध किसका
काल  या मन का ?
मन तो समय से भी
ज्यादा गतिमान है
फिर कौन ठिठका
काया जड़ या चेतन मन ?
समय का तो कोई बंधन है ही नहीं
फिर ये विरोधाभास क्यों
मन को समझाने का
या खुद को बहलाने का?
पता नहीं क्या
बस अब हम चलते है ।