झमाझम बारिश हो रही थी। पता नहीं क्यों बादल भी पुरे क्रोध से गरज रहा था। पल भर में मंदिर का परिसर जैसे खाली हो गया। कई को अंदर इसी बहाने कुछ और वक्त मिल गया।पूजा का थाल लिए लोग या तो अंदर की ओर भाग गए या कुछ ने प्रागण में बने छत के नीचे ठिकाना ढूंढा तो किसी ने अपने छाते पर भरोसा किया। महिलाएं हवा से अपनी पल्लू संभाली तो किसी ने पूजा की थाल को इन पल्लू से ढक लिया । आखिर भगवान् को भोग लगाना है। पंडित जी अब थोड़ा इन्तजार करने लगे, क्योंकि भक्तजन तीतर बितर हो गए।
इन सबके बीच वो लड़का अब भी मंदिर के बाहर यूँ ही खुले आसमान के नीचे खड़ा है। बारिश से पूरा बदन भींग रहा है। बदन के कपडे शरीर से लिपट अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है। पेट या पीठ पता नहीं चल रहा। एक दो ने भागते भागते उसे छत के नीचे छुपने के लिए कहा भी। लेकिन जैसे अनसुना कर वो बारिस का ही इन्तजार कर रहा था। कुछ झिरकते हुए उससे बचते निकल गए।
उसका चेहरा किसी ताप से झुलस सा गया हो ऐसा ही दिख रहा । पानी की बूंद सर से गुजर पेट को छूते छूते जमीन में विलीन हो रहा । इस बारिश के बूंदों को पेट से लिपटते ही चेहरे से समशीतोष्ण वाष्प निकल रहा है। ओंठो से टकराते पानी की बूंदों को जैसे गटक ही जाना चाहता है। वो अब भी वही खड़ा है।
बारिस की बुँदे अब थमना शुरू हो गया।
मंदिर अंदर से पंडित जी ने लगभाग चिल्लाते हुए आवाज लगाया -सभी भक्तजन अंदर आ जाए....। भगवान् के भोग का समय हो गया।
लोग निकलकर मंदिर के अंदर प्रवेश करने लगे। किसी के हाथ प्रसाद के थाल, किसी ने मिठाई का पैकेट तो कोई फल का थैला लटकाए अंदर बढ़ने लगे।
वो अब भी वही खडा हो उन प्रसादो को गौर से देख रहा था ,एकटक निगाहे उसी पर टिकी हुई है ।बीच बीच में ओंठो पर लटके बूंदों को अब भी गटकने की कोशिश कर रहा है ।
"शायद भगवान उससे ज्यादा भूखे है".....उसके चेहरे पर पता नहीं क्यों संतोष की हलकी परिछाई उभर आई है।
इन सबके बीच वो लड़का अब भी मंदिर के बाहर यूँ ही खुले आसमान के नीचे खड़ा है। बारिश से पूरा बदन भींग रहा है। बदन के कपडे शरीर से लिपट अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है। पेट या पीठ पता नहीं चल रहा। एक दो ने भागते भागते उसे छत के नीचे छुपने के लिए कहा भी। लेकिन जैसे अनसुना कर वो बारिस का ही इन्तजार कर रहा था। कुछ झिरकते हुए उससे बचते निकल गए।
उसका चेहरा किसी ताप से झुलस सा गया हो ऐसा ही दिख रहा । पानी की बूंद सर से गुजर पेट को छूते छूते जमीन में विलीन हो रहा । इस बारिश के बूंदों को पेट से लिपटते ही चेहरे से समशीतोष्ण वाष्प निकल रहा है। ओंठो से टकराते पानी की बूंदों को जैसे गटक ही जाना चाहता है। वो अब भी वही खड़ा है।
बारिस की बुँदे अब थमना शुरू हो गया।
मंदिर अंदर से पंडित जी ने लगभाग चिल्लाते हुए आवाज लगाया -सभी भक्तजन अंदर आ जाए....। भगवान् के भोग का समय हो गया।
लोग निकलकर मंदिर के अंदर प्रवेश करने लगे। किसी के हाथ प्रसाद के थाल, किसी ने मिठाई का पैकेट तो कोई फल का थैला लटकाए अंदर बढ़ने लगे।
वो अब भी वही खडा हो उन प्रसादो को गौर से देख रहा था ,एकटक निगाहे उसी पर टिकी हुई है ।बीच बीच में ओंठो पर लटके बूंदों को अब भी गटकने की कोशिश कर रहा है ।
"शायद भगवान उससे ज्यादा भूखे है".....उसके चेहरे पर पता नहीं क्यों संतोष की हलकी परिछाई उभर आई है।