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Friday, 8 June 2018

क्या जल रहा है...?

नीरो ...हाँ मैन सुना है....
कही इतिहास दोहरा तो नही रहा...।काल और सीमा से परे जाकर..।
जब हमने उससे द्वेष और ईर्ष्या किया तब ...जब प्रेम से भरी उसके प्रति दीवानगी देखी तब...। हाँ ...कुछ ऐसा ही है ...वो घृणा से उत्त्पन्न असृप्यता के उद्द्बोध से  उन अनगिनत सारो से एकरूप हो एक उत्कट प्रेम में आराध्य है...।ऐसा पहले हुआ क्या...?
   हाँ फिर अब नीरो तो नीरो है....।
तो क्या नीरो अब भी वही है...? क्या वाकई उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम एक रक्तिम गंध फैल गई है..? सांसो में क्या नीरो के बांसुरी से निकली राग कही एकरक्त पिपासा की उत्तकंठा जगाती है...? जल क्या रहा है...? वो रिस गए रेसे जो वाकई इतने कमजोर हो चले कि छिद्र से बस घाव और मवाद रिसते दिखते या फिर सदियो की वो समरसता की तरल भाव जिसको भरते रहने का भार बस तराजू की एक तुला सा किसी एक को...क्या यह जलकर वाष्पीकृत हो रहा है...?
   हाँ... लगता है ...नीरो बासुरी यही कही बजा रहा है...। कैसे धुन पर बिलबिलाए -बौखलाए जो इक्कठे नाच रहे...कौन है ये...?नीरो की धुन में ऐसी क्या खास ...सुनकर एक साथ सिमट गये...।
    जल क्या रहा है....रोम तो सदियो गुजर गए...फिर जलने कि दुर्गन्ध ...नही..नही..मैं तो कहूंगा सुंगंध है...यही कही यज्ञ का हवन कुंड है और लगता है कई मान्यताये एक -एक कर जल रहे हैं..।
     जब ऐसे ही शुभ मुहूर्त का यज्ञ काल चल रहा है तो नीरो बासुरी न बजाए तो क्या करे...?
   कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान क्या श्रीकृष्ण ने बासुरी का परित्याग कर दिया था...??