Saturday 22 June 2013

है हमने किया, क्या गुनाह ?

है हमने किया,क्या गुनाह ?
जो नभ ने यु ठान लिया 
अमृत बरसे जिस दरिया से 
धार काल बन क्यों निगल गया ?


धरती गरजे अम्बर गरजे 
थर्राई पाषाणों की शिला 
देव भूमी के इस आँचल को 
कफ़न बना किसने है लीला ?

मलय कांति की खुसबू फैलती 
डमरू  तुरही चहुँ दिश बजती 
वो गुंजित मंगल सी ध्वनी 
         क्रंदन में कौन बदल गया ?




है हमने किया,क्या गुनाह ?
जो नभ ने यु ठान लिया, 
अमृत बरसे जिस दरिया से, 
धार काल बन क्यों निगल गया ?

पुष्प लता तरुवर से शोभित, 
मृगछाला से सदा शुशोभित, 
उस भोले के आसन प्रांगन में 
रेत पाषण कौन बिछा गया ?

कणक किरण से सजने वाले ,
अमृत वन से छाने वाले ,
इस धरा पे किसने ऐसा 
कलुषित गरल बौछार किया ?


है हमने किया,  क्या गुनाह ?
जो नभ ने यु ठान लिया 
अमृत बरसे जिस दरिया से 
धार  काल बन क्यों निगल गया ?

Sunday 16 June 2013

मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है

क्या पाना हमें जिन राहों पर कदम बढते आये है? 
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है। 
न दीखता कोई दूर तलक मेरे आगे ,
फिर भी ख्वाब हमने सजाये है।
ये पत्तिया ये दबे दूब सारे ,
कर तो रहे कुछ ये भी इशारे। 
इन्ही पगडंडियो पर कोई तो है गुजरा 
जिनको इन्होंने दिए कुछ सहारे। 
इन्हें देख कर दिल में  रौशनी झिलमिलाये है। 
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है।।

चले हम कहा से अब कहा जा रहे है ?
उलझते सुलगते बस बड़े जा रहे है।
जिनको सुना मंजील अब मिल गई है, 
इन्ही राहो पे वो भी टकरा रहे है।
दिखा दूर झिलमिल वो मिलता किनारा 
पास आने पे खुद को  वही पा रहे है। 
पर चलने की चाहत नहीं डगमगाए है। 
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है।। 

ये जीवन है पथ, पथिक हम चले है, 
क्या पाना है मुझको ये द्वन्द लिए है। 
कर्तव्य पथ पर तो बढना ही होगा ,
पर पाना है क्या यहाँ कौन कहेगा ?
कदम दर कदम ख्वाहिश गहराता जाता 
किसी मोड़ पर काश कोई ये बताता।
है उम्मीद पे दुनिया बिश्वास गहराए है।
मंजिल की निशां नहीं बस दिल में आशाये है।। 

वक्त की बात


बिहार की राजनीती पर चंद पंक्तिया ........

न हमको है फायदा न उनको कोई लाभ 
फिर क्यों चले हम यु साथ साथ।।

बिहार में भले टूटी है तारे 
सभी को दिखाई देती है दरारे।। 

मगर हमारी मंजिल तो दिल्ली है यारो 
दिवालो पे लिखे इबारत खंगालो।। 

कर्म ही धर्म है सब कहते रहे है 
सेक्युलर का खेल यु ही चलते रहे है।।

अगर ये पासा अभी हम न फेके 
वो बैठे ताक में हमें नीचे घसीटे।।

इन बातो को दिल पर न रखना सदा 
वक्त को आने दो हम दिखाएँगे वफ़ा।।

कुछ दूर अलग अलग होंगी राहे 
कुछ तुम जुटालो कुछ हम बनाले।। 

फिर ये दरारे खुद मिट चलेगी 
अगर दिल्ली की गद्दी एन डी ए को मिलेगी।।

राजनीती में ये सब चलता रहा है 
वक्त की बाते है सब घटता रहा है।।


Friday 14 June 2013

आज का पल


इसी दौड़ - दौड़  के जीने का मजा है 

दौड़ने  को  न मिले मौका वो जिन्दगी सजा है ।।


जियो मस्ती में 

सीरियल को देख  के समय ना गबाओ 

कुछ समय माँ के चरणों में भी  बिताओ।।

रेत पे नंगे पाँव टहलने वाले अब भी टहलते है 

जो चैनल् में है उलझे उनका मन कहा बहलते है।।

रखने  वाले इन्टरनैट के साथ पड़ोस का भी हल रखते है 

दोस्ती निभाना जानो तो ऐसे तार  भी मिलते है।।


जिन्हें प्रकृति से प्यार है उन्हें सब याद है  

डूबते और उगते सूरज बीती नहीं ,आज की ही बात है।।

कमबख्त इस दुनिया में अभी भी बहुत मजा है 

आप लूटना न जानो तो ये आपकी सजा है।।  


पल-पल को गुजरे वक्त से जोड़ना बेमानी है 

हर पल को जो न जिए उसकी नादानी है।।


कल गुजर गए आज बस आज का ही  राज है,

जो जिए इन पलो को  वही असली महाराज है।।


Sunday 28 April 2013

मर्दित होते मान बचाये

भ्रमित मन पग पग पर है भ्रम ,
हवा दूषित आचार में संक्रमण ,
क्या घूम चला विलोमित पथ पर 
अब संस्कार का क्रमिक संवर्धन ?

पशु जनित संस्कार कुपोषित ,
सामाजिक द्व्दन्द बिभाजित ,
कानूनों की पतली चादर 
कटी फटी पैबंद सुशोभित।। 
आओ अपना हाथ बढाये 

हाहाकार मचे अब तब ही ,
नर पिशाच जब प्यास बुझाये। 
काली दर काली हो कागद ,
और नक्कारे में भोपू छाये।। 

बंजर चित की बढती माया 
काम लोलुप निर्लज्ज भ्रम साया, 
अविकारो का विशद विमंथन 
गरल मथ रहे गरल आचमन ।।

भेदन सशत्र अविकार काट हो 
शल्य शुनिश्चित चाहे अपना हाथ हो। 
हाथ बड़े अब रुक न पाए 
मर्दित होते मान बचाये ।।