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Thursday, 5 September 2013

बस कह दिया

बातो को कितना अब आसान कर दिया 
हर भाव को दिन के अब  नाम कर दिया। 

रफ़्तार जाती बढती समय अब है कम 
कैसे निभाए हर रोज रिश्तो का मर्म। 

फासले कदम के जब घट रहे है यहाँ  
दिलों के बीच जैसे बढ रही है दूरियां।  

कुछ हम अब चिंतनशील  हो रहे  
परिवार बढ रहे एकल बिम्ब हो रहे। 

भाव पहले जिनका कोई मुल्य न लगाया  
उसको भी बाजार के अब हम नाम कर रहे। 

हर तरह के रिश्ते दिन में सिमट गए
उतर से दिल के अब कार्डों पर छप गए। 

सुख रहा दिलो में प्यार भाव सुख रहा   
कैसे निभाए हर रोज जब सब बिक रहा। 

अब गुरु के बताये मार्ग कैसे हमें दे तार   
रोज है जिनकी जरुरत याद करते एक बार। । 

5 comments:

  1. दिलों के बीच जैसे बढ रही है दूरियां।
    ***
    ये हम सबका साझा दुःख है, फिर भी बढ़ रही हैं दूरियां... कौन जाने क्यूँ?

    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  2. भाव पहले जिनका कोई मुल्य न लगाया
    उसको भी बाजार के अब हम नाम कर रहे।

    बेहतरीन रचना।।।

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  3. अच्छा लिखते हो भाई ..

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    Replies
    1. आपका आभार ……… किंचित सशंकित ????………

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  4. अब गुरु के बताये मार्ग कैसे हमें दे तार
    रोज है जिनकी जरुरत याद करते एक बार।
    गुरु के बताये मार्ग पर ही हमेशा चलते रहिए
    हार्दिक शुभकामनायें

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