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Saturday, 28 September 2013

इज्जत का जनाजा है ...


इज्जत का जनाजा है 
बेशर्म आसुं बहा बहा रहे है,
बहरों की बाराती में
देखों भोपूं पे कई गा रहे है। ।

कौन किससे अर्ज करे
हर हाथों में शिकायत का लिफाफा है,
जिनको बिठाया है गौर करे
रौशन नजर उनका कहीं जाया है। ।

खुशहाली को बयां कैसे न करे
गोदाम अनाजों से नहाया है,
कमबख्त अंतरियों को खुद गलाते  है
अब तक कार्ड नहीं बनाया है। ।

मानणीयोँ को मान देना न भूले
कभी कदम बहक जाते है,
जम्हुरिअत इनसे ही जवां है
वरना कौन इसमें कदम बढ़ाते है। ।

हर कोई खफा है इन झोको से 
ये लौ बहक न जाये कही ,
आशियाने जो बनाये है ख्वावो के 
पल भर में धधक न जाये कही। ।  

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