सुख से ख़ुशी है या ख़ुशी से सुख
इस जीवन में किसकी हो भूख ।
आधार एक दूजे से ऐसे है मिलते
रेत पे लकीर जैसे बनते - मिटते।
खुशियां जीवित मन का उमंग
सुख बनते वस्तु निर्जीव के संग।
कदम-दर-कदम दोनों की आस
उठती है मन में दोनों कि प्यास।
इस मरीचिका को कैसे है समझे
मन कि तरंग यतवत भटके। ।
इस जीवन में किसकी हो भूख ।
आधार एक दूजे से ऐसे है मिलते
रेत पे लकीर जैसे बनते - मिटते।
खुशियां जीवित मन का उमंग
सुख बनते वस्तु निर्जीव के संग।
कदम-दर-कदम दोनों की आस
उठती है मन में दोनों कि प्यास।
इस मरीचिका को कैसे है समझे
मन कि तरंग यतवत भटके। ।