Thursday, 28 November 2013

कुछ पंक्तियाँ यूँ ही ......

सुख से ख़ुशी है या ख़ुशी से सुख
इस जीवन में किसकी हो भूख  । 

आधार एक दूजे से ऐसे है मिलते
रेत पे लकीर जैसे बनते - मिटते।

खुशियां जीवित मन का उमंग
सुख बनते वस्तु निर्जीव के संग। 

कदम-दर-कदम दोनों की  आस
उठती है मन में दोनों कि प्यास। 

इस मरीचिका को कैसे है समझे 
मन कि तरंग यतवत भटके। ।