Wednesday, 8 January 2025

सोहबत !

कुत्ता रो रहा था
वही गांव के किनारे
जहाँ इंसानो की बस्ती है !
कुछ कुत्तो को पकड़
आज ले गए थे
आपने साथ
अपनी सोहबत में रखने के लिये !
शायद इसी से
कॉप उठा था उसका अंतरात्मा
की ये कुत्ते भी
इंसानी फितरत
न सिख ले !
हम तो अब तक
काटते आये है भौंकने के बाद
ये काट खाएंगे
अब इंसान की तरह
जो काटने से पहले कभी भौंकते नही !


ड्रॉप या एटेम्पट !

  अयोध्या बाबू विगत तीन साल से कोलकाता में है। सरकारी सेवा के स्थानांतरण क्रम में यह अभी इनका ठिकाना है। इस सेवा की अपनी दिनचर्या है और उनका ऑफिस सुबह साढ़े नौ से शाम छः बजे तक होता है। अयोध्या बाबू  उससे इतर  खुद के लिए खुद की निर्धारित दिनचर्या निर्धारित कर रखे है और उसके लिए स्वतः सजग रहते है।इसी के तहत सुबह टहलना उनका शगल और शौक है। वो कहते है कि ये सुबह का एक घंटा सिर्फ और सिर्फ उनका है, जिसमे वो खुद से बात करते है, खुद को देखते है । नही तो दुनियादारी के कवायद में कभी ठीक से देखे ऐसा मौका भला कहा मिलता है।वैसे तो पारिवारिक जिम्मेदारियों की अपूर्णता को भरने में ही परिवार के मुखिया की पूर्णता समझा जाता है।लेकिन फिर भी यह एक घंटा वो सुबह के भ्रमण में खुद से संवाद के लिए रखते है। इसी दिनचर्या अनुसार अयोध्या बाबू सुबह पांच बजे के आस पास जग गए।

               अप्रैल के महीने में कोलकाता के आसमान में अभी सूरज का आगमन नही हुआ है, लेकिन उसकी आहट से ही रात का साया जैसे ड़र से सिमटने लगा है ।स्वास्थ के प्रति सचेत लोगो की पदचाप अब घर के सामने वाले रोड से आने लगा है। सुबह लगभग साढ़े चार बजे से पक्षियों की चहचहाट की तीव्रता में अब धीमा हो गया है। जैसे सबको जगाने के बाद अब  किसी और काम पर निकल गए हो। कोलकाता के जिस इलाके  में  वो रहते है, वहाँ अमूमन वनिस्पतियो की संख्या अन्य क्षेत्र के तुलना में ज्यादा है। खेलकूद वाले पार्क के साथ-साथ कई वनिस्पतियो वाले पार्क भी है। इसी के कारण चिड़िया जो कई शहरों से विलुप्त होते  जा  रहे सिटी ऑफ जॉय में इन चिड़ियों का रैन बसेरों अभी भी ज्यादा है और कोलकाता का यह क्षेत्र उनमे से एक है।
           
            अमृत के बारहवीं  बोर्ड का परीक्षा हो चुका है और आईआईटी जेईई के लिए अध्यनरत है।  पहला प्रयास जनवरी में हो चुका है और परिणाम अपेक्षानुरूप नही आया। तो फिर अप्रैल में होने वाले दूसरे प्रयास के लिए लग गया। जनवरी से अब तक कभी बोर्ड परीक्षा तो कभी आईआईटी प्रवेश परीक्षा के दरम्यान अपनी तैयारी के तालमेल बैठता हुआ अध्यन करता आ रहा है। अब कुछ दिन हो गए और बारहवीं के परिणाम भी घोषित हो चुके है, परिणाम अपेक्षानुरूप अच्छा  आया और प्रसन्न है, किन्तु अब भी सारा ध्यान अप्रेल के दूसरे प्रयास के जेईई के परिणाम पर टिका हुआ है।
            वैसे तो अयोध्या बाबू बच्चे के दिन प्रति दिन के कार्यकलापों पर नजर रखते है,  लेकिन  विशेष कुछ टोका टाकी नही करते। बस बीच-बीच मे पुछ लिया करते है कि कैसा तैयारी चल रहा है और वो संक्षिप्त सा उत्तर देता है- ठीक चल रहा है पापा !
फिर वो पूछते- ठीक या अच्छा ..?
तो फिर अमृत एक संक्षिप्त उत्तर देता - अच्छा ही है !

              आज जब वो सुबह  बाहर टहलने के लिए निकलने वाले थे, तभी अमृत अपने कमरे से निकलकर आया। सामान्यतः उनके बाहर निकलने के समय वह अपने कमरे में ही अध्यनरत रहता है। इसलिए आज  इस समय अमृत को  देखकर उन्हें लगा कि कुछ कहना चाहता है। इससे पहले की वो कुछ पूछते, लगभग रुआंसा होता हुआ अमृत बोला- रिजल्ट आउट हो गया है..!
            पिछले दो तीन दिन से जेईई प्रवेश परीक्षा के परिणाम घोषित होने की चर्चा चल रही थी और बच्चे बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे थे। ताकि परिणाम के अनुरूप अपनी योजना भविष्य के लिए तैयार करे..!
           वैसे तो अयोध्या बाबू अमृत के चेहरे के भाव से ही समझ गए कि परिणाम क्या हुआ है । किन्तु  उसके मन पर घिरे उजास की परिछाई जो चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा है, उसको नजरअंदाज करते हुए अपने जूते के फीते बांधते हुए उन्होंने पूछा- क्या हुआ..?
अमृत लगभग रुंधे गले से बोला - नही हुआ...!
     अमृत के चेहरे पर घिर आये निराशा के भाव तो बिल्कुल स्पष्ट ही दिख रहे थे, उसके लिये अयोध्या बाबू को  मनोविज्ञान के किसी विशेष अध्ययन की जरूरत तो है नही। आखिर पचास दशक तक जिंदगी के थपेड़े किसी भी  किताब से ज्यादा ज्ञान दे देता है। वैसे भी स्कूली पढ़ाई का विज्ञान पहले सिंद्धांत देता है और फिर प्रयोग द्वारा सिद्ध करने का प्रयास करता है। लेकिन जीवन अनुभव का विज्ञान तो पहले जिन्दगी की प्रयोगशाला में सिद्ध होता है और फिर उसके अनुरूप सिद्धान्त गढ़ता  है।

            तो अयोध्या बाबू को समझते देर नही लगा कि अमृत दिन-रात एक करके जिस लक्ष्य के लिए समर्पित है, वो उसकी पहुंच से अभी दूर है।परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद का समय एक ऐसी मानसिक उहापोह की रचना कर सकता है, जहां दिल में उठते हतोत्साह की धड़कन, रेत के तूफान की तरह भविष्य के लिए संजोए कई सपनो को रेत के टीले के अंदर दफन कर सकता है।  मन मे उठते उदासी की लहर  को अगर सही समय पर शांत नही किया गया तो यह कई बार बच्चों का भविष्य भी इस तरह के परिणाम से निकले भंवर में घिर कर विलीन हो जाते है। आये दिन इस प्रकार के खबर समाचार पत्रों में छपते रहते है।
         अयोध्या बाबू सुलझे हुए व्यक्तित्व के है। बेटे के भविष्य निर्माण के लिए सजग है, लेकिन अपेक्षाओं का बोझ कभी बेटे पर जाहिर नही होने देते। बल्कि समय-समय पर हमेशा सिर्फ हौसलावर्धन करते रहते है और जब कभी अमृत में अपनी तैयारियों को लेकर कुछ अनावश्यक तनाव में देखते तो मुस्कुराते हुए कवि "नागार्जुन" के कविता के ये दो पंक्ति जोर-जोर से बोलते-
“जो नहीं हो सके पूर्ण काम,
मैं उनको करता हूँ प्रणाम”!
        फिर वो अमृत से कहते बोलो। तो वो भी साथ-साथ इसे दोहराता । ऐसे ही बातों-बातों में  अयोध्या बाबू अमृत  से कहते-,देखो बेटा, भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान यूँ ही नही दिया। वो जानते थे आने वाले काल में हर कोई महत्वाकांक्षा और अपेक्षा के बोझ तले दबा होगा।कई बार अपेक्षाओं का भार इतना बढ़ जाएगा कि जीवन दूभर हो जाएगा। इसलिए  उसको संतुलन में लाने के लिए गीता सार ही उपयुक्त होगा। इसलिए गीता के मर्म को याद रखो। वो कहते सिर्फ अपने लक्ष्य और कर्म के प्रति समर्पित रहो ।वैसे भी फल तो आज के समय मे कुछ ही  है और उसके लिए प्रयासरत  तो कई है। फिर मुस्कुरा देते।

             लेकिन जैसे ही अयोध्या बाबू कहते- देखो बेटा इस लिए बार-बार एक ही मर्म को दोहराया जाता है की कर्म करो और फल की इच्छा मत करो। तो कभी-कभी अमृत कहता- पापा गीता में क्या सिर्फ इतना ही नही लिखा है,मैं भी बीच-बीच मे पढ़ता हूँ।
तो अयोध्या बाबू मुस्कुराकर कह देते- हाँ बेटा गीता में सिर्फ इतना ही नही लिखा है,बल्कि ये तो पूरे जीवन का अलग-अलग अध्याय ही है, लेकिन जीवन के जिस अवस्था  मे तुम हो वहां बस कर्म योग के इसी मर्म का ध्यान रखना काफी है।बाकी भी आगे काम आएंगे।
इसलिए बेटा सिर्फ अपना बेहतर करने का प्रयास करो, अगर इसमे नही हुआ तो इसका अर्थ है कोई और बेहतर प्रयास तुम्हारे इंतजार में है। फिर जोर-जोर से कविता पाठ करने लगते-
“जो नहीं हो सके पूर्ण काम,
मैं उनको करता हूँ प्रणाम”
    अमृत थोड़ा निश्चिंत होकर, मानो जेठ के सूरज पर अचानक से बादल घूमर आने से जैसे गर्मी से राहत का अनुभव होता , उसी निश्चिंत भाव से अपने  अध्यन में लग जाता।

        एक दिन अमृत के तैयारी के ऊपर  बातचीत के क्रम में अयोध्या बाबू अपनी पत्नी से कहते है- अभिभावक बच्चों के भविष्य के प्रति सजग और सचेष्ट रहे यहां तक तो ठीक है, किन्तु जब अपनी अधूरी इच्छा को पूरा करने की अपेक्षा का बीज अपने मन मे पनपने देते है तो कई बार बच्चे अपने ऊपर लादे गए इस अपेक्षा के बोझ से उबर नही पाते है।क्योंकि  यह अपेक्षा का बीज तो एक परजीवी पौधे की तरह है, जो एक बार दिमाग में पनप गया तो आपके दिल को चूसकर  दायरा इतना बड़ा बना देगा कि उसकी घनी परिछाई में बच्चे उसमे जैसे कही खो जाते है।

अयोध्या बाबू की इन बातो को सुनकर सुनकर उनकी पत्नी कुछ नही बोली। सिर्फ यह सोचती रही क्या अयोध्या बाबू घुमाफिराकर उनको तो कुछ कहना नही चाहते।

वैसे भी आये दिन समाचार चैनलों में इस प्रवेश परीक्षा से पूर्व ही बच्चों के आत्महत्या के खबर से मन  सशंकित रहता है। वो कभी-कभी इस समाचार को देखकर कहते हुए अपनी धर्म पत्नी से कहते- पता नही अभिभावक बच्चों को सिर्फ खिलने देना चाहते है या फिर खिलने के बाद इन फूल का माला अपने गले मे डालना चाहते है। तो उनकी पत्नी उनके बातों पर गौर किये बिना कहती- अब बच्चों के आत्महत्या में आप फूल और माला की क्या चर्चा करने लगे। अयोध्या बाबू इसपर बिना कुछ कहे मौन ही रहते।

       तो जैसे ही आज सुबह-सुबह अमृत ने यह कहा की नही हुआ  ! अयोध्या बाबू अंदर से निराश तो बहुत हुए, ये निराशा इस बात का नही था कि उनको बच्चे से कोई ढेर सारी अपेक्षा थी, बल्कि इस बात का था कि अमृत ने परिश्रम में कोई कोर-कसर नही छोड़ा था। लेकिन दिल के भाव को चेहरे पर आने नही दिया।
       तभी अमृत की मम्मी  रसोई घर से  दो कप चाय ट्रे में लेकर वहां पहुंच गई। टहलने से पूर्व लगभग नित्य का नियम है कि एक कप गर्मा गर्म चाय पीकर ही बाहर निकलते है। वैसे तो सर्दी के मौसम में सुबह-सुबह इस एक चाय की तासीर अमृत से कम नही होता। लेकिन अन्य मौसम चाहे वो अप्रेल या मई क्यों न हो, आदत में सुमार चीज की तासीर लगभग एक जैसा ही होता है।
  जैसे ही अमृत के मम्मी यह सुनी की - नही हुआ.! वो हाथ मे चाय का ट्रे पकड़ी हुई ऐसे देखने लगी जैसे कोई बहुत बड़ी अनहोनी हो गई है।
       सामान्यतः माताएं आजकल बच्चों के भविष्य के प्रति कुछ ज्यादा संवेदनशील हो गई है। इस संवेदनशीलता के तह में कब बच्चे के भविष्य से ज्यादा अपनी अहम की पूर्ति की लताये पनप जाती उनको पता ही नही चलता। बच्चों के भविष्य के प्रति अनावश्यक सजगता कब बच्चों पर भार बनकर उसे अवसाद में धकेल देता है, वो भी पता नही चलता।कभी माँ तो कभी पिता इस रूप में पेश आते तो कभी दोनों।
     खासकर आर्थिक रूप से मध्यमवर्गीय परिवार में यह एक सामान्य गुण या कहे अवगुण विकसित हो गया है। बाकी आर्थिक रूप से झूझ रहे परिवार में तो बच्चे बचपन से ही संघर्ष में तपकर निकलते है। बेशक प्रवेश परीक्षा में कम उत्तीर्ण होते है और नही भी होते है तो संघर्ष के जज्बा से प्रेरित ही रहते है । अवसाद के लक्षण इनको छूने में थोड़ा हिचकिचात  है।जबकि आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार कई बार इसके बल पर बच्चे का भविष्य अनुकूल करने में सफल हो जाते है।
     जैसे ही अयोध्या बाबू ने अमृत के माँ को हाथ मे ट्रे लिए मूर्तिवत देखा, वो समझ गए कि मन मे संजोये हुए शीशमहल अमृत के इस कथन का बोझ  नही ढो सका और भरभराकर ढह गया है। इसके पहले की उसके बोझ से ट्रे भी गिर जाए उन्होंने चेहरे पर अनावश्यक मुस्कुराहट लाते हुए कहा- क्या हुआ चाय दो !
अमृत की मम्मी चेहरे पर उभर आये तनाव को छिपाने का असफल प्रयास करते हुए एक कप चाय उनकी ओर बढ़ा दिया और वही रखे सेंटर टेबल पर ट्रे सहित चाय का कप रख दिया। फिर अमृत की ओर देखते हुए पूछा - क्या कह रहे थे बेटा, क्या नही हुआ ? क्या परीक्षा का परिणाम निकल गया ? मैं इतने दिन से बार-बार कह रही थी! ठीक से पढ़ाई करो..ठीक से पढ़ाई करो। लेकिन मेरा कोई सुने तब तो। आजकल के बच्चे तो खुद को ही बहुत होशियार समझने लगते है। लो अब...अब क्या करोगे..? एक ही सांस में वर्तमान और भविष्य से सभी संबंधित प्रश्न पूछ बैठी।

आयोध्या बाबू आंखों के भंगिमा से उनकी द्रुत गति पर रोकने का प्रयास करते रहे ! लेकिन जिसके सपने सुबह के चिड़ियों की चहचहाट में टूटू जाये तो उनका ध्यान उस शोर पर होता है, वो चेहरे का भाव कम और आवाज पर ध्यान ज्यादा देते है।
अयोध्या बाबू थोड़ा संयत से बोले- अरे आखिर ऐसा क्या हो गया, जो सुबह-सुबह इतना बोल रही हो।आखिर पूरी बात तो सुनो।
उनकी पत्नी कुछ न बोल ट्रे से कप उठाकर चाय पीने लगी। तो अयोध्या बाबू अमृत की ओर देखते हुए बोले- तो रिजल्ट कब निकला !
अमृत ने फिर संक्षिय सा उत्तर दिया- रात में ! लगभग बारह बजे के आसपास।
       अयोध्या बाबू समझ गए कि अमृत के रात की नींद इस परिणाम के इंतजार में रूठा हुआ था और अब परिणाम अमृत से रूठ गया है !अर्थात यह एक ऐसी परिस्थिति में पहुंच गया है, जहां अवसाद इसे अपने गिरफ्त में लेने को तैयार बैठा होगा। उसपर अमृत के मम्मी की प्रतिक्रिया लगभग उसे उस घेरे की ओर धकेल ही दिया है।अमृत वही चुपचाप नजरे नीचे किये खड़ा है और पैर के अंगूठे से फर्स को कुरेद रहा है। कमरे में एक खामोशी पसर गई है, सिर्फ घर के बाहर रोड से बीच-बीच मे पदचाप की आवाज आ रही है। अयोध्या बाबू  अपने जूते का फीता बांध सीधे होकर सोफा पर बैठ गए है और चाय का कप हाथ मे लिया। अमृत की मम्मी वही सामने वाले सोफा पर चुपचाप बैठे जैसे कही और खो गई है।
            एक घूंट चाय पीने के बाद अमृत की ओर देखकर कहते है- तो फिर अब क्या सोचा है ? अमृत कुछ कहता उससे पहले अमृत की माँ थोड़ी उत्तेजित होकर बोली- तो अब क्या, अब कॉलेज में एडमिशन लेगा, जिसमे भी होता है ले लेगा, कही से आखिर इंजिनीरिंग तो करेगा!
              काफी समय से चुप खड़ा अमृत अपनी माँ की इस बात पर तुरंत बोला- मैं एड्मिसन नही लूंगा, मुझे कोई अच्छा कॉलेज नही मिलेगा । कहकर फिर अंगूठे फर्स को कुरेदने का प्रयास करने लगा।
तो अयोध्या बाबू फिर से अमृत की ओर उन्मुख होकर बोले तो फिर क्या चाहते हो ?
अमृत ने कहा- मैं "ड्राप" लूंगा !
अयोध्या बाबू थोड़ा गंभीरता से पूछे- ड्राप मतलब...?
अमृत- मैं एक "एटेम्पट" और लेना चाहता हूं !
अयोध्या बाबू इस पर स्मित मुस्कान के साथ बोले- "ड्राप"या "एटेम्पट" यह तो स्पष्ट होना  चाहिए! क्योंकि कई बार हमारे द्वारा प्रयुक्त शब्दो के अर्थ हमारे परिणाम या फल को प्रभावित करता है।
अमृत अयोध्या बाबू का आशय समझते हुए इस बार आवाज में थोड़ी दृढ़ता के साथ बोला - एटेम्पट ! फिर अपनी मम्मी की ओर देखा। वो अयोध्या बाबू और अमृत के बीच इस बातचीत को निर्रथक समझ इसके ऊपर कोई ध्यान नही दे रही थी।
        तबतक अयोध्या बाबू अपनी धर्मपत्नी को देखते हुए बोले- एक और प्रयास करना चाहता है तो क्या दिक्कत है।
वो बोली मैं कब बोल रही हूं कि कोई दिक्कत है, हाँ बच्चे का ध्येय और लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए।
       अयोध्या बाबू मुस्कुराते हुए बोले- बेटा असफलता एक स्वभाविक प्रक्रिया है। जीवन मे अलग-अलग मोड़ पर इससे सामना होता ही रहता है। बड़ी बात ये है कि उसको स्वीकार कर फिर से एक बार लक्ष्य निर्धारित कर पिछले गलतियों से सबक ले प्रयास करना ही असली विजय है और यही गीता मर्म भी है। इसलिए फिर से एक बार उसी जोश और जुजुन के साथ फिर से एक औऱ प्रयास में लग जाओ। फिर से नागार्जुन की कविता के दो पंक्तियों ऊंचे स्वर में अपनी आदत अनुसार पाठ करने लगे-
“जो नहीं हो सके पूर्ण काम,
मैं उनको करता हूँ प्रणाम”!
         आयोध्या बाबू का चाय का कप खाली हो चुका और सामने उनकी धर्मपत्नी चाय पीने में लगी हुई है। अमृत चेहरे पर छाई उदासी के बादल जैसे अयोध्या बाबू के शब्दों से कही विलीन हो गए। चहरे पर एक आत्मविश्वास की किरण तैरने लाग।
           अयोध्या बाबू उठकर सुबह के भ्रमण पर निकल गए और अमृत अपने अध्ययन कक्ष की ओर चल दिया। चिड़ियों की चहचहाट अन्य दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा गूंज रही है।