Monday, 28 April 2014

बदलते पैमाने

रौंद कर सब शब्द 
उससे गुजर गए,
कुछ दिल को भेद
कुछः ऊपर से निकल गए। 
अलग-अलग करना 
अब मुश्किल है, 
जिंदगी जहर बन गया 
नहीं तो जहर जिंदगी मे घुल गये। 
लानत और जिल्लत के बीच
वो खुद को ढूढ़ रहा था,
जलालत की सब बातें जब से
इंसानी सरोकारों में मिल गए।
सबने चिंता दिखाया 
कल के लिये सब बैचेन दिखे,
कुछ को देश निकाला मिला तो 
कुछ को समुन्दर मे डुबों दिये।
बदलेगा क्या 
ये तो वक्त बताएगा, 
किन्तु सब भाव अब 
वोट के कीमत मे सिमट  गये। 
जो जरिया है और   
तरक्की का पैमाना है बना,  
उस लोकतंत्र में चुनाव ने  
सारे पैमाने बदल दिये। ।    

17 comments:

  1. हार्दिक आभार.....

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  2. वर्तमान परिवेश को परिभाषित करती रचना बहुत प्रभावशाली ।

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  3. बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना
    मन को छूती हुई
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    आग्रह है----
    और एक दिन

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  4. आपकी सुन्दर रचना पढ़ी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , शुभकामनाएं.

    Recent Post वक्त के साथ चलने की कोशिश

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  5. DB43BC6466TimothyE869F3DB6E25 November 2024 at 14:29

    9F3D8EFB1E
    görüntülü şov

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