Tuesday, 6 February 2018

सर्व पकोड़ा रोजगार अभियान

            चाय की चुस्कियों में चार साल निकल गए....। लेकिन चाय की चुस्कियों से ही कही क्षुदा मिटती है क्या .....? सबने एसिडिटी का शिकायत करना शुरू किया । लेकिन ये तो अड़े हुए है....चाय से काम चल जाएगा । किंतु एक तो राजस्थान में वैसे ही गर्मी ज्यादा होता है सो ज्यादा की चर्चा से एसिडिटी का होना स्व्भविक था सो तीन बेचारे बीमार होकर मैदान से बाहर हो गए।
                    सामने 2019 है ....चाय के साथ साथ अब पकोड़े भी परोसने को तैयार है। युवा भारत में पकोड़े के विभिन्न ब्रांड अम्बेडरो से रु बरु कराया जायेगा। बेरोजगारी की काट सिलकांन वैली से खोजते हुए कहा स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया के रास्ते होते हुए...गांव के चौराहे पर आकर रुक गया। पकोड़े के ठेले जहाँ देश में लोकतान्त्रिक समाजवाद के अवधारणा से पूर्व से ही लगता आ रहा है। क्योंकि भले ही नेहरू जी आधुनिक भारत के मंदिर कितने भी बना दिए ...लेकिन स्वप्न्न द्रष्टा को पता था कि उस मंदिर के बाहर भक्त गण अपने पूजा के दौरान भी इन चाय और पकोड़े के ठेले के प्रति समर्पित रहेंगे।
                 कुछ बुनियादी भाव और धारणाओं के प्रति हमारा नकारात्मक सोच ही हमें आगे नहीं बढ़ने दे रहा है। आखिर पकोड़े के प्रति उलाहना का भाव ये दिखा रहा है कि इसके पर कैपिटा इनकम को जानने को लेकर हमारे अर्थशास्त्री कोई प्रयास न कर सिर्फ लकीर पिट कर चलते रहे है।
                    अब जाकर कोई युग द्रष्टा ने इसके महत्व को रेखांकित किया है तो भी हम उपहास करने में लगे हुए है। सोचिये ये पकोड़े की ठेले गली गली घर घर होंगे और सुबह सुबह ही चारो ओर से मिर्ची के पकोड़े, बेसन के पकोड़े, प्याज के पकोड़े नाना प्रकार की खुसबू से आपका सुबह खुशनुमा होगा। नए नए नौजवान विभिन्न पोशाकों में अपने क्षमतानुसार इन ठेलों पर ऑन लाइन पकोड़े के आर्डर लेते मिलेंगे। सरकारी नौकरी के लिए नौजवानों को सरकार ढूंढते रहेंगे लेकिन किसी भी नौजवान को पकोड़े तलने से फुर्सत नहीं होगी। बेरोजगारी कब की पोलियो उन्मूलन की तरह उन्मूल हो जायेगा। सोचिये किया दृश्य होंगे। सरकार के सोच में सहायक बनिए और एक युगान्तकारी रोजगार उन्मूलन की घटना का गवाह...सर्व पकोड़ा रोजगार अभियान के लिए सभी सहयोग दे।