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Sunday, 9 October 2016

किस फलसफे पर जाऊं .....

किस फलसफे पर जाऊं 
मौत की युक्तियां तलाशें  
या सिर्फ जिंदगी को गले लगाऊं ।।

खिंची है कितनी दीवारें 
हर नजरो में नजर तलाशती है , 
हमें शक न हो अपनों के मंसूबो पर  
इसलिए सरहद पर जमाये बैठे है ।। 

बुझ रहे खुद के  दियें हर रोज  
इसकी किसी को कोई खबर नहीं ,
रह रह कर जला दो  उसे 
हर तरफ शोर ये सुनता ।। 

भूख से कोई मरे इसमें कोई तमाशा नहीं 
खुद कि  बदनीयत पे कौन शक करे ,
शुक्र है की वो बगल में पाक सा  है 
उसी की ख्वाहिस का इल्जाम क्यों न करे ।। 

अपनों से ही मासूम से सवाल पर उबल जाए 
लगता है रक्त की तासीर बदल सी गई है , 
शायद इन लाशों में बहुत कुछ छिपा है 
जमाये गिद्ध की नजरो से पूछो जरा ।। 

बहुत माकूल अब माहौल है 
वो अपना भी लिबास हटा देते है , 
कई सालो के सब प्यासे है 
एक रक्त का दरियां क्यों न बहा देते है ।। 

किस फलसफे पर जाऊं 
मौत की युक्तियां सुझाऊं 
या सिर्फ जिंदगी को गले लगाऊं ।।   

2 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-2016) के चर्चा मंच "विजयादशमी की बधायी हो" (चर्चा अंक-2492) पर भी होगी!
    श्री राम नवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. पर हकीकत को भी तो नहीं भुलाया जा सकता है ... हर मौत का हिसाब जरूरी है ... जिसका दिया जा सके उसका तो दे दिया जाये ...

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