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Friday, 28 February 2020

क्या जला है..?

हर तरफ धुंआ और आग है,
जल रहा क्या ?

शायद इंसानी जज्बात और इंसानियत
मासूम बच्चों की खिलखिलाहट।।

नही सिर्फ घर और समान नही जलते
फिर जल रहा क्या?

वो होली के गुलाल राख होते है
और ईद की सेवइयां भी झुलस रही
गंगा में जलती चिता की राखे है
तो जमुना में रक्त के छीटें।।

नही सिर्फ दुकान और आशियाने नही जलते
तो फिर जला क्या है?

आपसी विश्वास की डोर में धुएँ है
इंसानी एहसास में लपटे है
हम कौन और तुम कौन
गैर होने के तपन ही दहके है।।

नही सिर्फ ये शहर नही जलते
फिर जला क्या है ?

भविष्य के दिये जले है
कई घरों के चिरागे जले है
साथ रहने के भरोसे जले है
बच्चों के सर से पिता के साये जले है
ये जलन की ऊष्मता
कभी भविष्य में कम होगी या नही
कई दिलो में ये भरोसे भी जली है।।

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