Pages

Sunday, 1 August 2021

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

             सोशल मीडिया के आने के बाद बाकायदा अब हर एक "डे" रह-रहकर उभरता रहता है और व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो मुझे पहले इस तरह के "डे" कभी मनाने की बात तो दूर वो याद भी आता ऐसा नही लगता...! किन्तु अब रिश्तों की भावपूर्णता पूरे सिद्दत से मोबाइल स्क्रीन पर उभर के आता है....! अगर हकीकत में परस्पर उसका आधा भी भाव समन्वय हो जाये तो विभिन्न रिश्तों के चादर पर कई जगह पैबंद की गुंजाईश ही नही होती..खैर!

            अब बाते "फ्रेंडशिप डे" यानी "मित्रता दिवस" की..! इस प्रकार के "डे" में एक खाशियत यह भी है कि वस्तुतः यह अपने इंग्लिश नामकरण के साथ प्रचलित होता है, जैसे "फादर्स डे" , "मदर्स डे" इत्यादि और फिर हम हिंदी भाषी अपने भाषानुरूप अनुवाद कर इस दिन के अहमियत को दर्शा कर रिश्तों के बंधन के प्रति अपना समर्पण दर्शाते हैं। समय की धार में  रिश्तों के प्रति समर्पित रहने वाले भाव अब रिश्तों से ज्यादा दिन के प्रति समर्पित दिखने लगा है....खैर..!

              आज "फ्रेंडशिप डे" यानी कि मित्रता दिवस है। अब यह दिन राम-सुग्रीव की मित्रता के दिन की याद है या फिर कृष्ण-सुदामा और न जाने कितने कथा है, उनमे से किसका अनुसरण है..पता नही..! 

               पहले दो लोगो के बीच परस्पर मित्रता भी विधि-विधान पूर्ण था। जब राम-सुग्रीव की मित्रता हुई तो अग्नि को साक्षी माना गया। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है-

तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।

पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाइ ।।

            अर्थात तब हनुमान्जी ने दोनों ओर की सब कथा सुनाकर तथा अग्नि को साक्षी देकर परस्पर प्रतिज्ञापूर्वक उनकी मैत्री करवा दी।

                 यह मित्रता जोड़ने के रिवाज हमने बचपन मे अपने  गांव में देखा है.! हम उम्र जिसे आप साधारणतया दोस्त समझते है, वो सिर्फ सहपाठी होते थे, दोस्त नही..! दो लड़कों या लड़की में दोस्त बनने की बाकायदा एक  विधिपूर्ण और वैविध्यता से भरा कार्यक्रम होता था। दोनों परिवारों के सम्मुख दोस्त बनने का रस्म पूरा किया जाता था। किसी से दोस्ती का बंधन गाँठना कोई सामान्य प्रचलन की बात नही थी। अब जो दो लड़के आपस मे दोस्त बनते वो एक दूसरे को नाम नही लेते, बल्कि दोस्त, बालसंगी,मीत इत्यादि कहकर बुलाने का रिवाज होता था। उसी प्रकार दो लड़की आपस मे एक दूसरे को बहिना, सखी प्रीतम, कुसुम, इत्यादि रूप से बुलाते थे।जिनका महत्व किसी रिश्ते-नाते से कम नही होता था। समझिए दो लोगो के बीच मित्रता को भी एक सामाजिक स्वीकृति प्राप्त था और उस मित्रता को निभाना भी धर्मोचित भार..!

       समय ने रफ्तार पकड़ लिया, शोशल मीडिया पर मित्र की सूची अब फेस बुक और व्हाट्सएप पर जैसे-जैसे लंबे होते जा रहे और मित्र शब्द से निकलने वाले भाव वैसे-वैसे सिमटते जा रहे है...! खैर...अब बदलते समय मे मित्रता निभाने की अपेक्षा भी कुछ ही लोग पालते है, अब तो मित्र सूची के अनुसार उनको जान ले वही बहुत है। फिर भी चलन है औऱ वर्तमान का परिपाटी भी समयानुसार अपना रूप बदलता रहता है। तो इसी को कायम रखते हुए इस सूची में जिन मित्रो को जानता और पहचानता हूँ और उन मित्रो को जिन्हें न जानता हूँ और न पहचानता हूं.... उन सभी को " हैप्पी फ्रेंडशिप डे"...!!

6 comments: