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Monday, 17 September 2012

छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा करते है



छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा  करते है,
जाने किसकी खोज में हम सब आगे आगे बड़ते  है।।

खेतो की चादर सुनहरी जो लहराया करती थी,
पिली-पिली सरसों से जब  धरती यु लरजती थी।
कोयल की कु-कु की तान ,लहरों से टकराती थी,
सर सर सर सरकती बहती, हवा नहीं शहनाई थी।

छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा करते है,
जाने किसकी खोज में हम सब आगे आगे बड़ते   है।।

वो गाँव की गली संकरी जिसका कोई नाम नहीं ,
जहा द्वार पर सबका दाबा ,जहा कोई अनजान नहीं,
हर घर एक रसोई अपना,कोई चाची -ताई थी,
अपना घर क्या होता है,न कोई समझाई थी।।

छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा करते है,
जाने किसकी खोज में हम सब आगे आगे बड़ते  है।।

आम की बगिया में मंजर और टिकुला का आना  था ,
वोही अपना  राजमहल और मचान सिंघासन था।
रात-रात भर उस बगिया में सारे सपने  अपने थे ,
चंदा मामा साथ हमारे लुका छिपी खेलते थे।।

छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा करते है,
जाने किसकी खोज में हम सब आगे आगे बड़ते  है।।

अब तो  अब हम खुद से ही  अनजाने है,
रिश्ते कब के भूल गए कौन   किसे पहचाने है।
कंक्रीटो ने अब बगिया के  राजमहल को लुट लिया ,
नदिया और कोयल की बोली सबसे नाता टूट गया।।

छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा करते है,
जाने किसकी खोज में हम सब आगे आगे बड़ते  है।।

1 comment:

  1. wahhh, kitani sundar kavita hai, bahut achhe.

    छुट गई वो मंजर पीछे ,जिसको ढूंडा करते है,
    जाने किसकी खोज में हम सब आगे आगे बड़ते है।।

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