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Tuesday, 27 March 2018

वक्त ......बस यूँ ही ....


जिंदगी की व्यस्तता वक्त को कोसती हुई चलती है। और वक्त ...वो क्या ....वो तो अपनी रफ़्तार में है। कोई फर्क उसे नहीं पड़ता...सतत...बिना रुके....अनवरत अपनी उसी रफ़्तार में जिसमे प्रकृति ने उसका सृजन करते समय उसे तय कर दिया। बिना किसी क्षोभ  ...किसी द्वेष ...कोई राग .....कोई अनुराग ..सभी से निर्लिप्त भाव से होकर बस अपनी गति पर सतत कायम है। मतलब बिलकुल स्पष्ट है....वक्त हमारे अनुकूल स्वयं की लय में कोई बदलाव तो लाने से रहा फिर .....फिर हमें स्वयं को वक्त कर ताल के साथ ही कदम ताल करना होगा।
     जब आप इन्ही व्यस्त वक्त में खुद को थोड़ा परिवर्तित कर....उसी वक्त से...अपने लिए कुछ वक्त चुरा लेते और उसके साथ लयबद्ध हो जाते है तो आप  उन लहरो और थपेड़ो में छुपी हुई जीवन के मधुरतम तरंग से कंपित हो खुद में उस ऊर्जा का सृजन करते जो ऊर्जा अनवरत इस समुन्दर की लहरें तट से बार बार टकराने के बाद भी अपने तट की ओर उन्मुख होना नहीं छोड़ती है...अपनी नियति की पुनः टकराकर इसी समुन्दर में विलीन हो जाना है। उसी उत्साह उसी जोश से भरकर अपने में असीम ऊर्जा का संचार कर फिर से दुगुने जोश के साथ निकल पड़ती है।
          इसी थपेड़े को झेलते हुए फिर से उस उत्साह का संचार कर हमें तट की ओर उन्मुख होना ही पड़ता है । यह जानते हुए भी की जिस ओर जीवन की लहर हमें ले जाने को आतुर है उस तट पर टकराकर इसे विलीन ही होना है। फिर भी यही जीवन नियति है और इसके लिए इसी नियत वक्त में से आपको कुछ वक्त चुराना होगा क्योंकि प्रकृति की यही नियति है।
      वक्त अपने से विच्छेद होकर कोई वक्त नहीं देता।

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-03-2018) को ) "घटता है पल पल जीवन" (चर्चा अंक-2923) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरु अंगद देव और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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