Friday 17 April 2020

कोरोना डायरी

           संघर्ष के दौर में विभिन्न प्रकार के लहरे हिचकोले लेते रहेंगे। पर इन लहरों पर सवार होकर कोई सागर लांघ जाए ऐसा तो नही होता और कोई डर के तट पर ही बैठा रह जाये यह भी नही हो सकता। फिर इस संक्रमण के दौर में संघर्षरत वीर हतोत्साहित हो जाये तो क्या?क्या आश्चर्य नही की संक्रमण से ग्रसित शरीर खुद के इलाज की जगह भस्मासुर बन इधर-उधर छुप रहा है,तो फिर उसका मंतव्य और प्रयोजन क्या हो सकता है?

                 इसलिए कोविडासुर संक्रमण के दौर में, सिर्फ बीमारी नही बल्कि इसे काल और समय का संक्रमण समझे ।साझा संस्कृति की गंगा-जमुना तहजीब की वकालत करते उदारपंथी इसको समझने की कोशिश करे कि गंगा तो अब भी अपने देश और मानव धर्म की निष्ठा के साथ वैसे ही अक्षुण है। किंतु जमुना की रवायत में अब भी कालिया नाग के जहर का असर है।जिसका प्रदर्शन रह-रह कर होता रहता है।

          जब काल संक्रमित होता है तो समय की धार में नदियों के बहाव के तरह गंदगी और दूषित पदार्थ कही किनारे में जमा होने लगते है।ये वैसे ही गंदगी की तरह मैले मटमैले धार में झाग बन उबल रहे है। ये पत्थर चलाते पुरुष और महिला उसी दूषित और संक्रमित मानसिकता के परिचायक है।जिनके लिए देश के मुख्य राह की जगह सिर्फ अपने एकांगी रास्ते का अनुसरण करना है।यह सिर्फ एक विरोध की नकारात्मक प्रदर्शन नही है।बल्कि उस आदिम सोच की हिंसात्मक प्रवृति और विचार जो  अब भी जेहन में पोषित है। जिसके लिए वसुधैव कुटुम्बकम कोई मायने नही रखता है। बल्कि राष्ट्र रूपी गंगा की धारा जो प्लावित हो रही है, उसमे संक्रमित हो रखे प्रदूषित सोच और उस अनर्गल प्रलाप का धोतक है। जिसे हम विभिन्न वाद और निरपेक्षता के ढाल में और पनपने दे रहे है।स्वभाविक रूप से नदी की धार को काट कर अलग कर दिया जाय तो वह अपने स्वत्रन्त्र इकाई के रूप से किसी और रूप में परिवर्तीत हो जाती है।विगत यह हो चुका है और उसका परिणाम सब देख रहे है।इसलिए यह तो स्वयं सिद्ध है ।अतः इस दूषित मानसिकता के स्वच्छता अभियान के लिए निश्चित ही शारीरिक संक्रमण के साथ-साथ मानसिक संक्रमण को भी नियोजित किया जाय और इसके लिए भी प्रयोजन आवश्यक है।

                 आश्चर्य नही की इतने बड़े कुनबे में एक आवाज आती है उन मूर्खो और जोकरों के लिए, तो क्या अन्य बाकी आदर्श और सिद्धान्त की ढोल पीटने वाले इस बार मूक या बधिर हो गए है।एक आवाज तो नक्कारखाने में तूती की तरह विलुप्त हो जाएगी। फिर मीडिया उस एक के आवाज को कोरस के रूप में गाने लगता है।सहृदय उदार दिखने के लोलुप आत्मप्रवंचना में उसे उसे सिर्फ कुछ लोगो के करतूत के रूप में देखे तो आश्चर्य है। फिर इतना तो लगता है इस मानसिकता को या तो पढ़ पाने में अक्षम है या फिर उदारवाद के दिखावा में वास्तविकता से दूर रहना ही श्रेयस्कर समझ रहे है।

             असमंजस का यह दौर जितना किरोना के कारण भयावह नही है उससे ज्यादा भयावह तो वो सोच और मानसिकता है जो इस कोविडासुर के कारण अस्पष्ट रूप से कई जगह परिलक्षित हो रहा है।समय रहते सभी प्रकार के संक्रमण को इलाज नही होता है तो ये किसी न किसी रूप में रह-रह कर देश को बीमार करते रहेंगे। क्योंकि संक्रमित शरीर से  कही ज्यादा खतरनाक संक्रमित सोच और बीमार मानसिकता है।

कोरोना डायरी

द्वंद अभी न मंद हो
उत्साह और उमंग हो।
एक विकल्प यही सही
घर मे सब बंद हो ।।

कुछ छिटक गए कही
बिखर गए इधर उधर।
छद्म भेष धर लिए
पहुच गए नगर डगर।।

कोरोना सा काल ये
जुनून सर पर लिए।
बुझ न जाये कही
मनुज हित के दिए ।।

है लगे यहाँ वहाँ
जो जिंदगी के जंग में।
वो टूट न जाये कही
अराजको के संग में ।।

मानवता संतप्त और त्रास है
ये विश्व समर का काल है।
कोविडासुर का अब
निश्चय ही संहार है।।

Friday 27 March 2020

कोरोना डायरी-3

                    आप इस बात को जीतना जल्दी समझ ले कि ये विषराज "कोविडानंद-उन्नीस" किसी भी रूप में रक्तबीज राक्षस से कम नही है। असुर रक्तबीज की कहानी आपने पढ़ा होगा।देवासुर संग्राम में रक्तबीज का प्रसंग आज के स्थिति में शायद प्रासंगिक  है।वह एक ऐसा शक्तिशाली राक्षस था,जिसके शरीर से खून की एक-एक बूँद गिरने पर उतने ही रक्तबीज राक्षस पैदा हो जाते थे।इस प्रकार यह अनेक युद्ध जीता। उसके पश्चात देवताओ के अनुरोध पर माँ दुर्गा को काली के विकराल रूप में प्रकट होकर, रक्तबीज से युद्ध करना पड़ा। किन्तु जब -जब रक्तबीज पर प्रहार होता उससे गिरने वाले रक्त से एक नया रक्त बीज पैदा हो जाता। तब माँ काली ने अपनी जीभ का विस्तार किया और गिरने वाली हर रक्तबन्द को जीभ पर ले अपने अंदर ले लिया और इस प्रकार असुर रक्तबीज का वध कर दिया। 

           अर्थात ये "लॉक डाउन" भी उसी का विस्तार है ताकि हर कोई इसे अपने अंदर लेकर इसके विस्तार को खत्म कर दे नही तो यह रक्तबीज की तरह बढ़ता जाएगा और आपको अपनी और औरो की  इच्छा के प्रति काली की तरह रौद्र रूप धारण करना पड़ सकता है।

                 कहते है महाभारत के युद्ध के तीसरे दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म का वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाते, जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं। जबकि श्रीकृष्ण ने युद्ध मे शस्त्र नही उठाने को प्रतिज्ञाबद्ध थे।अतः अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना के साथ पूरे उत्साह के साथ युद्धरत होना पड़ा। फिर भी अठारह दिन लग गए।

              आज "लॉक डाउन" का तीसरा दिन है और यह दिख रहा है कि लोगो को इस युद्ध मे लड़ने से हतोत्साहित होकर नियमो को भंग करने को आतुर हो रहे है। इस विषराज "कोविडानंद-उन्नीस" से युद्ध  इक्कीस दिनों में समाप्त हो जाएगा इसकी संभावना कम है। फिर भी हतोत्साहित होने की जरुरत नही है। क्योंकि बल्कि राम-रावण युद्ध भी चैरासी दिनो तक चला था। अतः अपने उत्साह में कमी न आने दे, इस युद्ध मे आप ही कृष्ण है और आप ही अर्जुन।

                पुनः आधुनिक संजय(मीडिया) से युद्ध की खबर ले।  कुरुक्षेत्र के इस मैदान में जिन योद्धाओं की जरूरत है ,वो युद्धरत दिख रहे है,आप इनकी लड़ाई को आगे न बढ़ाये ।घर में बैठने पर भी आपको योद्धा रूप में स्वीकार किया जाएगा। बाकी आपकी मर्जी....

Thursday 26 March 2020

कोरोना डायरी

आज नवरात्रि का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है। फिर ब्रह्मचारिणी स्वयं में ब्रह्रा और चारणी का संधि है।जिसमें ब्रह्म का अर्थ तपस्या और चारिणी का मतलब आचरण करने वाली। फिर ऐसे मान्यता और विश्वास बेसक पुरातन हो लेकिन ये सार्वकालिक ही है। तो फिर वर्तमान में आज लॉक डाउन का देश मे भी दूसरा दिन है। बेशक महिषासुर मर्दन  नौ दिनो में हो गया था, कौरवो को पराजित करने में अठारह दिन लगे।किन्तु  "कोविदानंद- उन्नीस" तो कम से कम 21 दिनों का संघर्ष निश्चित है और आगे भी बढ़ सकता है। इसलिए ये सभी के लिए आचरण युक्त तपस्या का समय है। फिर आप इस तपस्या की सिद्धि के लिए अपने आचरण को ऐसे ढाले की आपके पांव लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नही करे।

          हमारे पास तो खैर अभी कोई कोई चारा नही है। हम लॉक डाउन में रहना चाहते है,लेकिन अब तक अनलॉकिंग प्रोसेस में ही है। पूरे रोड पर जब कोरोना का खौफ और सन्नाटा पसरा हो और उस समय जब मोटरसाइकिल की आवाज उन सन्नाटो को चीरती हुई आगे बढ़ती है, तो मन का द्वंद में कौन सा राग छिड़ता है, कहना मुश्किल है।

       वक्त ने गंभीरता ओढ़ ली है।आंकड़ो की रफ्तार बता रहा है। जो इसको अब तक हर बात की भांति इसे भी हवा में सिगरेट की छल्लो की तरह उड़ाना चाहते है, शायद वो भी अब थोड़ा संजीदा हो जाये। इसलिए अब इक्कीस दिनों के लिए बेहतर है, बाहर निकलने से पहले इक्कीस बार सोचे।

             बाकी कुरुक्षेत्र के मैदान में जो योद्धा अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ डटे है, उनको इस युद्ध मे जीतने में अपना योगदान दे और ये तभी आप कर सकते है जब आप अपने आपको सुरक्षित घर पर रखे।घर के दहलीज को लांघना विषराज को घर पर आमंत्रित करना है। बाकी आधुनिक संजय से आप प्रतिपल इस युद्ध का खबर लेते रहे, लेकिन गान्धारी की तरह आंख पर पट्टी न बांधे। खुली आंख से देखे और स्वयं आकलन करे।

Tuesday 24 March 2020

कोरोना डायरी

हमे कभी-कभी बड़ा कोफ्त होता है। हमे किसी ऐतिहासिक घटनाक्रम के साक्षी होने का मौका अब तक नही दिखा। लेकिन अब एक मौका आखिर कोरोना ने दे ही दिया। गंभीर तो इसके प्रति हम पहले ही दिन से थे, लेकिन आने वाला कल इतना उथल-पुथल वाला होने जा रहा है, इसका अंदाज न था।
           इससे पहले भी कई बीमारी नाम बदल-बदल कर आते रहे है। कभी सार्स, तो कभी मार्स, कभी बर्ड फ्लू उड़ने लगा तो कभी स्वाइन फ्लू छाया, कभी एंथ्रेक्स से घबराए रहे।
         लेकिन ये कोरोना ने तो वाकई घटनाक्रम में ऐतिहासिक मोड़ ले आया। कोविड-19 अब इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया। जब देश सबसे लंबे लॉकडाउन के दौर से गुजरेगा।
         ज्यादा दुखी होने की कोई जरूरत नही है।अब इसके अलावा कोई चारा भी नही है।"सटले तो गइले" कई दिनों से सोशल मीडिया पर सचेत किया जा रहा था। लेकिन आप हम है कि मानते नही। फिर ये चेताया कि हॉस्पिटल में इतने बेड नही है कि आपको रखना संभव हो और फ़ोटो फ्रेम किसी को भला क्यों कबूल हो फिर घर के अलावा और कोई दूसरा उपाय अब तक किसी एक्सपर्ट ने बताया नही।
     अतः घर की चहारदीवारी ही आपकी लक्ष्मणरेखा है। जाने कब से सभी भागने में व्यस्त थे। थोड़ा मौका मिला है सुस्ता ले और घर मे बैठे-बैठे कहानी बुनिये। ताकि आने वाले समय मे आप भी कहानी सुना सके कि  एक बार जब "कोरोना विष राक्षस" के महापराक्रमी पुत्र "उन्निसानन्द कोविड" को आपने घर मे बैठे-बैठे ही परास्त कर दिया। इस ऐतिहासिक घटना क्रम में आपके योगदान को आने वाली पीढ़ी सराहेगी और जब आप से बार-बार ये पूछेगी की बताइए न आखिर बिना अस्त्र और शस्त्र के आपने "उन्निसानन्द कोविड" को कैसे परास्त कर दिया?
         और फिर आप सिर्फ बिना कुछ कहे मुस्कुरायेंगे। भला क्या कहेंगे ..जब मानव मंगल ग्रह पर घर बनाने की बात सोच रहा था, तब भी हम सब के पास "उन्निसानन्द कोविड" को हराने के लिए घर मे बैठने के बिना और कोई कारगर अस्त्र नही था।