Tuesday 18 September 2018

बिग बॉस में जुगलबंदी

                 शायद 83 का वर्ष रहा होगा। घर मे नया-नया टेपरिकोर्ड ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराया । तब तक बगल के घर मे ग्रामोफोन पर गाने सुनने से ज्यादा उसके डिस्क के ऊपर कुत्ते को ग्रामोफोन में गाने की तस्वीर आकर्षित करता था। खैर...। नए टेपरिकोर्ड के संग उसके कैसेट स्वभाविक थे। टी-सीरीज का उदय हो चुका था। प्राम्भिक रूप से बस इतना ध्यान है कि मुकेश के गाये रामचरितमानस के कैसेट बजते थे। फिल्मी गाने गिने चुने थे। इसी बीच भजन गंगा के केसेट ने बजना शुरू कर दिया और ठुमक चलत राम चन्द्र के साथ ही अनूप जलोटा का नाम पैजनिया की भांति बजने लगा। फिर तो शायद ही ऐसा होगा कि कोई नया भजन का एलबम घर नही आया हो। आवाज की सात्विकता का प्रभाव ऐसा था कि उनके गाये गजल पर भी भजन के ही भाव सुनने में आता था। भजन संध्या सुपरहिट हो चुका था। समय के धार के साथ अनूप जलोटा कही किनारे लग गए। 

                  अब वर्षो बाद अनूप जलोटा जसलीन के संग बिग बॉस में दिखे है। बार-बार उनका गाया भजन "श्याम पिया मोहे रंग दे चुनरिया" गूंज रहा है। शायद उनके कीर्तन का ही प्रताप है कि "बिग बॉस" ने अपने घर मे "विशेष रिश्ते" के डोर के साथ अनूप जलोटा संग जसलीन को आमंत्रित कर दिया। अब देखे की प्रेम-चुनर का रंग  उतरता है या कब बिग बॉस का घर छूटता है। "कलर" ने अपने इस घर मे कई रंग भरे है। स्वभाविक है प्रेम का रंग ही सभी को नजर आ रहे है। तभी तो दोनों छह गए है। देखिए अब इस घर मे दोनो की जुगलबंदी में कौन सा राग निकलता है।


Wednesday 5 September 2018

रुपये की लीला...

                     रुपया आजकल रोज गिर रहा है। कुछ चैनल इसपर विशेष चिंतित है और कुछ डॉलर के मुकाबले भाव बताकर चुप हो जाते है। अब तक के इतिहास में ऐसा नही हुआ है। फिर कोई भी इतिहास बनाने वाली घटना को ऐसे नकारत्मक भाव मे प्रस्तुत करना इनकी मानसिकता को दर्शाता है। रोज-रोज ऐसे थॉडे ही न होता है। हम तो इसी बात पर खुश है कि ईन ऐतिहासिक घटनाक्रम के गवाह हम भी बने है। खैर....।।  साथ ही साथ ये भी सुनने में आया है... हो सकता है अफवाह हो ....कि जिन्होंने रुपये के चाल पर विशेष नजर रखा है  उनके ऊपर इनकम टैक्स वालो की भी विशेष नजर है।
                      मूझे लग रहा है कि आर्थिक नीतियों के सूत्रधार ने कुछ नए सूत्र खोजे है। भले अब तक कुछ लोग इसे महज कागज का एक टुकड़ा न मान इसके अवमूल्यन को राष्ट्र का अवमूल्यन मानते रहे। लेकिन वो विचार भी भला कोई विचार है जो कि स्थिर और दृढ़ रहे। मांग में तरलता का सिद्धांत अर्थशास्त्र में  काफी प्रमुख है और जब सबकुछ अर्थशास्त्र  से प्रेरित है तो विचारो पर उसका प्रभाव तो स्वभाविक है। इसलिए अब लुढ़कते रुपये में शायद नया दर्शन हो।
                       जिस प्रकार से काला धन जमा करने में सभी प्रेरित थे और नॉटबंदी के बाद भी ज्यादातर बच निकले, तो फिर ये रुपये गिर रहे है या जानबूझकर गिराया जा रहा है ...कुछ कहना मुश्किल है। बेशक आप गिरते रुपये को देख ये धारणा बना रहे हो कि सरकार रुपये को संभाल नही पा रही है। लेकिन मुझे लगता है कि अब कुछ नए नीति का सूत्रपात हुआ है कि जब तक आपका रुपये से मोह भंग नही होता तब तक इसका लुढ़कना जारी रहेगा।
                       आपको दुखी और निराश होने की जरूरत नहीं है । कुछ डॉलर पॉकेट में आ जाये फिर देखिए कैसे लुढ़कते रुपये को देख दिल खुश होता है। वैसे भी रुपये को हाथ का मैल ही कहते रहे है और इस मैल को रगड़ रगड़ कर साफ कर ले नही तो भावी योजना में अभी तो सिर्फ रुपया लुढ़क रहा है। हो सकता है कही लुढ़कते- लुढ़कते गायब ही न हो जाय...क्या पता..?