Tuesday 3 March 2020

दिल्ली दंगा


               दिल्ली की हवा तो पहले से खराब है, इसकी जानकारी तो हमे थी। किन्तु हवा इतनी जहरीली हो गई है इसका एहसास तो आने के बाद हुआ।  क्रंदन और वंदन का दौर अब भी अनवरत है। धार्मिक कुनिष्ठा के साथ सहनशीलता की अतिरेक प्रदर्शन तो हो ही गया। फिर भी यथोचित मानवीय गुणों को तो तभी ही सहेजा जा सकता है।जब वर्तमान आपका सुरक्षित हो।असुरक्षा के भाव धारण कर कब तक इंसानी जज्बात और मानवीय संवेदना को आप वैसे ही सहेज पाते है,कहना कठिन है। 
                एक कानून के ऊपर स्वभाविक रूप से बौद्धिक या अनपढ़ जो भी हो स्व-पंथ के एक चादर में आकर विरोध का स्वर दे, किन्तु लोकतांत्रिक मूल्यों से कोई वास्ता न रखे। तो ऐसे भीड़ को उन्मादी और वहशी में तब्दील करने में विशेष परिश्रम नही करना पड़ता है।वैसे स्थिति में तो और भी आसान है जब आप पहले से ही किसी को अपना दुश्मन मान बैठे है।  
              जब वर्तमान अभिव्यक्ति की आजादी के हर्ष से अतिरेक होकर बढ़ रहे है, तो शायद वो बहुत कुछ बाहरी कारको से प्रभावित हो परिमार्जित होकर प्रदर्शित हो रहा है। ध्रुवीय विचारो का ऐसा परिवर्धन अगर होगा तो फिर उसका परिणाम दिल्ली दंगो के रूप में ही निकल कर आएगा।वर्तमान में एक पक्षीय उभार को देखने के लिए भूत के  ससंकित भाव भी ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में उतने ही समकालीन है।क्योंकि विभाजन एक ऐतिहासिक सत्य है।अतः बहुसंख्यक भाव को भी उसी मानवीय मनोविज्ञान के परिधि में ही तलाशने की भी आवश्यकता है। 
                 कानून और व्यवस्था उस मानवीय पहलू और भाव का भाग है, जहाँ बहुसंख्यक नागरिक उस पर विश्वास रखता है।  फिर यह भी विचारे की बदलते भूगोलीय और भू-खंडीय परिपेक्ष्य में यह भाव सास्वत है या फिर इसके बदलने की स्वभाविक वृति है।इसके नए उभार और आयाम ऐसे ही बदलते रहे तो व्यवस्था दिल्ली की तरह मूक दर्शक बने रह जाएंगे। 
              तमाम विरोधभास और अन्य के प्रति अपनी निष्ठा के बीच इतनी गुंजाइस अवश्य रहे की कम से कम इंसान कैसे इंसान बना रह सके  इन प्रश्नों पर भी विचार करने के अवसर बचा रहे।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को    "रंगारंग होली उत्सव 2020"  (चर्चा अंक-3630)    पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. इंसान बने रहना ही आज सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है

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