Wednesday 25 January 2017

गणतंत्र दिवस कि शुभकामना .....एक विचार

                          विडंबना कहे या प्रारब्ध । जिस राष्ट्र का अतीत पौराणिकता के अलंकार से आवृत हो और इतिहास गौरवशाली गण और समृद्ध तंत्र का गवाह हो, उसके विवेचन पर आज तक मंथन चल रहा हो ,उसके वर्तमान में कुछ पड़ाव का सिंघवलोकन शायद आत्म विवेचन के लिए आवश्यक है। आवश्यक इसलिए भी है कि राष्ट्र अगर खुद में पुनर्जीवित हो जाये तो क्या उसका परिपोषण उसी रूप में हो रहा है या गौरवशाली अतीत को जीना चाहता है तो वर्तमान में ऐसा क्या है जो उसको सार्थकता देता है? जो की उसके नागरिको को यथोचित मानव के रूप में होने का अर्थ प्रदान कर सके । क्या मानव के सर्वागीण विकास के लिए उसे विभिन्न इकायों का दायरा खीचना जरुरी है? और क्या ये दायरा गाँव, शहर,राज्य,देश,महादेश के विभिन्न इकायों में कैसे विश्लेषित करता है, इस अंतर्विरोध का कभी कोई तार्किक परिणीति हो सकता है?
                    आज जब देश के 68वे गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या है और कल के गौरवान्वित समारोह का रोमांच मन में उठ रहा है,जाने क्यों ये विचार मन पर आवृत हो रहे है। विचारो कि श्रृंखला पुरातनता के वैभवशाली आडम्बरो से होता हुआ विभिन्न कालखंडों के ऊँचे नीचे पगडंडियों से वर्तमान पर ठहर जाता है। ठहर जाता यह सोचकर की शायद किसी राष्ट्र के इतिहास में इतने वर्ष बहुत ही निम्न है, किन्तु जितना है उसके अनुरूप वो गतिमान है। शायद वर्तमान पर आक्षेप कहे या जहाँ से यात्रा की शुरुआत उस भूत खंड पर, जो भी हो मन सशंकित भाव से ही बद्द हो जाते है ।क्या पाना था क्या पाया है ,दोष और कारण की अनगिनित मतैक्य हो सकते है। कारक भी इतर से बाहर न होकर हम अंतर्गत ही है।विचार है विचार करने के की एक दिनी भाव एक दिन न होकर सर्वगता के साथ दिल और दिमाग में घर कर सके ।
                  किन्तु इस के इतर भी इस अवसर को जाया न कर इसके प्रति अपनी गर्विक उद्घोषणा में हर कोई इसके सहभागी बने।आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना।।

Sunday 22 January 2017

तलाश

बाजार अपना ही था
लोग अजनबी से थे
भीड़ कोलाहल से भरी
कान अपने शब्द को तलाशते थे ।
मंजरों से अपनापन साफ झलकता था
भरे भीड़ में अब खुद ही गुम
खुद को तलाशते थे ।
मरीचिका से प्यास बुझाने
जाने कितने दूर चले आये हम
न वो है न हम है
जाने किसे तलाशते हम ।
राहें जस की तस है पड़ी
राहगीर बदल है गए
हमने मंजिलो पर तोहमत है लगाया
कि वो रास्ते बदल दिए ।।