Wednesday 28 October 2015

इच्छाएं ...

आसमान की गहराई अनंत
जैसे हमारी इच्छाएं  ,
गहराते बादल बस उसे ढकने का
चिरंतन से करता विफल प्रयास
दर्शन मोह से विच्छेदित कर
आवरण चढ़ाने को तत्पर  ,
एक झोंका फिर से
उस गहराई को अनावृत कर देता।
और फिर से अनगिनत
टिमटिमाते तारे की तरह
प्रस्फुटित हो आते
कुछ नई लतिकाओं की चाह ,
जब  धीर गंभीर सागर भी
मचल जाते है चन्द्र से बसीभूत हो
तो हम तो मानव है।
सम्मोहन के लहरों 
पर सवार हो उसे पाने की प्रवृति
ही तो  प्रकृति प्रदत है ,
उत्तकंठ लालसा छदम दर्शन से त्याग 
कर्म सापेक्ष न हो 
कही अकर्यमन्यता का पर्याय तो नहीं। । 

22 comments:

  1. बहुत ही शानदार और उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

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  2. बेहतरीन....
    आप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)

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  3. एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_

    http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html

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  4. बहुत सुंदर । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

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  5. This comment has been removed by the author.

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