आसमान की गहराई अनंत
जैसे हमारी इच्छाएं ,
गहराते बादल बस उसे ढकने का
चिरंतन से करता विफल प्रयास।
दर्शन मोह से विच्छेदित कर
आवरण चढ़ाने को तत्पर ,
एक झोंका फिर से
उस गहराई को अनावृत कर देता।
और फिर से अनगिनत
टिमटिमाते तारे की तरह
प्रस्फुटित हो आते
कुछ नई लतिकाओं की चाह ,
जब धीर गंभीर सागर भी
मचल जाते है चन्द्र से बसीभूत हो
तो हम तो मानव है।
सम्मोहन के लहरों
पर सवार हो उसे पाने की प्रवृति
ही तो प्रकृति प्रदत है ,
उत्तकंठ लालसा छदम दर्शन से त्याग
कर्म सापेक्ष न हो
कही अकर्यमन्यता का पर्याय तो नहीं। ।
जैसे हमारी इच्छाएं ,
गहराते बादल बस उसे ढकने का
चिरंतन से करता विफल प्रयास।
दर्शन मोह से विच्छेदित कर
आवरण चढ़ाने को तत्पर ,
एक झोंका फिर से
उस गहराई को अनावृत कर देता।
और फिर से अनगिनत
टिमटिमाते तारे की तरह
प्रस्फुटित हो आते
कुछ नई लतिकाओं की चाह ,
जब धीर गंभीर सागर भी
मचल जाते है चन्द्र से बसीभूत हो
तो हम तो मानव है।
सम्मोहन के लहरों
पर सवार हो उसे पाने की प्रवृति
ही तो प्रकृति प्रदत है ,
उत्तकंठ लालसा छदम दर्शन से त्याग
कर्म सापेक्ष न हो
कही अकर्यमन्यता का पर्याय तो नहीं। ।