दो वक़्त की रोटी के लिए जो भी मोहताज है,
उनके लिए क्या टू जी या कोयला का राज है।
महल मिला बडेरा को या नहर कोई पी गया,
गरीब की दवा को भी कोई यु ही लिल गया।
गाय के चारे को जो रोटी समझ के खा गये
तोप के गोले भी जो युही पचा गए ।।
आदर्श घर न मिल सका उसका क्या काज है,,
उनके लिए क्या टू जी या कोयला का राज है।।
जमी असमान हो या खेत खलिहान हो ,
ताबूतो को भी ले गए या तेलगी का काम हो ।
जहा नजर घुमाये हम , ये भिखारी छा गए
इनको देख के अब भिखारी भी शर्मा गए।।
सत्यम की बात हो या खेलगांव का राज है,
उनके लिए क्या टू जी या कोयला का राज है।
रोटियो को मांगते गरीब हमने देखा है
जिनके पास कमी नहीं वो अमीर देखा है।।
ऐसे अमीर बढ गए जो मन के गरीब है,
जिनके पास सब कुछ,पर लूट ही नसीब है।।
जनता अब जानता है सबको पहचानता है,
पैसे वाले भूखे नंगे बेल अब मांगता है।
आज नहीं तो कल अब खतम इनका राज है,
दो वक़्त की रोटी के लिए जो भी मोहताज है,
उनके लिए क्या टू जी या कोयला का राज है।।
कितनी भावनात्मक और व्यंगात्मक कविता है।
ReplyDeleteमन प्रसन्न कर दिया आपने