कालीखो से घिरे दीप को न देख
इस लौ को थोड़ा और जगमगाने दे,
दबी हुई थी हवा, अब बहक गई है
रोक मत कदम बहक जाने दे।
ये गरम हवा का झोका ही सही,
दिलो में जमे बर्फ तो गलाने दे।
हर रोज एक नई तस्वीर छपती है
थक जाय नैन पर उसे निहारने दे।
जो ढूंडते अब एक अदद जगह
रौशनी से उनका चेहरा तो नहाने दे।
न्याय की तखत पे बैठे है जो
उनके बदनीयत की बैशाखी अब हटाने दे।
दिलो में घुट रही है धुआ लोगो के
इन्ही चिंगारी से आशियाना जलाने दे।
जो भीर रहे शासक से, सिरफिरे ही सही
नियत से क्या हकीकत तो जान लेने दे।
इस लौ को थोड़ा और जगमगाने दे,
दबी हुई थी हवा, अब बहक गई है
रोक मत कदम बहक जाने दे।
ये गरम हवा का झोका ही सही,
दिलो में जमे बर्फ तो गलाने दे।
हर रोज एक नई तस्वीर छपती है
थक जाय नैन पर उसे निहारने दे।
जो ढूंडते अब एक अदद जगह
रौशनी से उनका चेहरा तो नहाने दे।
न्याय की तखत पे बैठे है जो
उनके बदनीयत की बैशाखी अब हटाने दे।
दिलो में घुट रही है धुआ लोगो के
इन्ही चिंगारी से आशियाना जलाने दे।
जो भीर रहे शासक से, सिरफिरे ही सही
नियत से क्या हकीकत तो जान लेने दे।
bahut khub sir
ReplyDeleteदिलो में घुट रही है धुआ लोगो के
ReplyDeleteइन्ही चिंगारी से आशियाना जलाने दे।
वाह!! क्या बात है भाई,, बहुत सुन्दर
जो भीर रहे शासक से, सिरफिरे ही सही
ReplyDeleteनियत से क्या हकीकत तो जान लेने दे।
बहुत अच्छी पंक्तियाँ,,,बधाई,,,कौशल जी,,,,
पोस्ट पर आने के लिये आभार,,,,
फालोवर बने तो हादिक खुशी होगी,,,,,
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