सभी शोर मचाने में लगे है। न भारत कि ऐतिहासिक गौरव का मन मे कोई भान है और न ही अपनी सदियों पुरानी "अथिति देवो भव" की आदर्श को अपने स्मृति में सहेज कर रखा है।जब दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से मिलता है तो स्वागत संभवतः ऐसा ही होता है। पैसे आते जाते है लेकिन ऐसे-ऐसे राष्ट्राध्यक्ष रोज-रोज कोई थोड़े ही देश मे पधारते है। जो उनके लिए बजट की चिंता की जाय। ये सिर्फ नई दीवार की तर्कसंगतता को ढूंढने में लगे है। जबकि हमे मालूम है वो दुनिया का सबसे विकसित और शक्तिशाली देश है।
जब ओसामा को पाकिस्तान उसकी नजरो से छिपा नही सका तो बाकी चीजे तो वो खुद जान जाएगा। वो बेशक जान जाए लेकिन हमें क्या दिखाना है ,इसका तो पता हमे होना चाहिए। फिर जो नही दिखाना चाहते उसके लिए तो दीवार खड़ी करनी ही होगी।
जब देश के अंदर बिना ईट के ही कितने दीवार खड़े है, गिनती करना मुश्किल है।फिर एक ईंट की दीवार खड़ी हो गई तो क्या फर्क पड़ता है।
स्वागत के लिये राह पर पलके बिछा कर रखे। अनावश्यक भैहे को तान उठती दीवारों पर नजर न डाले। आंखों में खराबी आने को संभावना हो सकती है।।
जब ओसामा को पाकिस्तान उसकी नजरो से छिपा नही सका तो बाकी चीजे तो वो खुद जान जाएगा। वो बेशक जान जाए लेकिन हमें क्या दिखाना है ,इसका तो पता हमे होना चाहिए। फिर जो नही दिखाना चाहते उसके लिए तो दीवार खड़ी करनी ही होगी।
जब देश के अंदर बिना ईट के ही कितने दीवार खड़े है, गिनती करना मुश्किल है।फिर एक ईंट की दीवार खड़ी हो गई तो क्या फर्क पड़ता है।
स्वागत के लिये राह पर पलके बिछा कर रखे। अनावश्यक भैहे को तान उठती दीवारों पर नजर न डाले। आंखों में खराबी आने को संभावना हो सकती है।।
सामायिक लेख! शानदार पहलू ।
ReplyDeleteसुंदर व्याख्या।
सुन्दर समसामयिक...
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