अपेक्षाओं का संसार असीमित है....सिमित साधनों के साथ कैसे और आखिर कब तक सामंजस्य बिठाया जाय....?
भय का दोहन हो रहा है या दोहन की बढती प्रवृति भय का कारण है...इसी असमंजस और उहापोह में बढ़ते जा रहे है । आंकड़ो की कुल रफ्तार और वास्तविक स्थिति के बीच न कही कोई चर्चा है और न ही कोई रूपरेखा दिखता है।
इन उलझनों के बीच भी नियत दिन अपने तय समय पर आकर उस दिन की भाव भंगिमा के अनुसार हमे आभूषणों के साथ नाट्य कला के मंचन के लिए स्वयं को सुस्सजित करना ही पड़ता है। दिन भर मंचन की सामूहिक प्रक्रिया का निष्पादन करने के पश्चात पुनः पीछे मुड़कर देखे तो सब कुछ वैसे ही उजड़ा उजड़ा दीखता जब कारीगर नाटक स्थल से उसके सजावट के तड़क भड़क वाले वस्त्र को मंच से खोलने के बाद दीखता है। बिलकुल हकीकत सदृश्य नंग धरंग । दृश्य को देख उसका विश्लेषण करने में असमर्थ .....पहले हम हकीकत के रंगमंच पर थे या अब जो नाट्य सदृश्य दिख रहा है वो ही वास्तविक रंगमंच है...कहना मुश्किल है?लेकिन हम जैसो के लिए तो "न दैन्य न पालनयम" के भाव ही सर्वोत्तम विकल्प है।
अब सबकुछ धीरे-धीरे ही सही किन्तु रफ्तार पाने का जुनून तो अब भी पूर्ववत है।लेकिन भय का आवरण हर ओर यथावत अपनी परिछाई में जकड़ रखा है और भय के कारण भी पर्याप्त है। एक सामान्य धारणा है "क्वांटिटी के बढ़ते ही क्वालिटी घटने लगता है" तो कोरोना के बढ़ते क्वांटिटी ने इसके प्रति उपजे भय के क्वालिटी में उत्तरोत्तर ह्रास करता जा रहा है। लेकिन ये भाव रूपक है वास्तविकता नही। फिर भी उम्मीद से बेहतर विकल्प और दूसरा कोई नही है।
अतः फिर भी आपको उम्मीद के संग अब भी होशियार और सचेत रहने की जरूरत है जब तक बाजी आपके हाथ न आ जाये।जरूरत न हो तो घर पर रहे और बाहर निकले तो मास्क और दूरी का अवश्य ध्यान रखे।बाकी आपकी मर्जी......
"#कोरोना_डायरी_35(फेसबुक)
जय मां हाटेशवरी.......
ReplyDeleteआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 11/05/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
बहुत बढ़िया।
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