हमें खेलने की आदत है। पता नहीं कब से सब खेलते आये है। धर्म से,जाति से, क्षेत्र से, जज्बातों और न जाने कितने नए -नए खेल सामने आते रहते है और ये कहानी रोज यूँ ही चलती जाती है। कुछ करने के हजार बहाने है और न करने के हजार फलसफे। अब हम जैसे तो दर्शक बन बस अपनी क्षुद्र बुद्धि के अनुसार उसपर बस तालिया ही बजाते निकल जाते। इस आशा में की इस बार शायद हमारे लिए कुछ खास होगा। किन्तु क्रमिक चक्रिक परिवर्तन हमें वही लेकर खड़ा कर देता है,जहाँ से कुछ नया का भान कर हम प्रस्थान करते है । कुछ नया होने का उत्साह आखिर हम किन बिन्दुओ का विश्लेषण कर के करते ये तो बस विश्लेषण का ही विषय है। लेकिन इसी बहाने कुछ नया हो जाय तो क्या छिद्रान्वेषी की भूमिका निभाए या सराहना करे दिमाग यहाँ किंकर्त्यवबिमूढ़ हो जाता है।
जिस राज को राज रखने के प्रयास कब से जारी था। उसे अब पर्दा के अंदर बेपर्द किया गया है। आने वाले कल में ये कितने का राज खोलेंगे ,देश और समाज के उच्चतम मानदंडो को ढ़ोते हुए कदमो को ये राज पिटारे से निकल कर कही लकवा न मार दे। वैशाखी के सहारे इतिहास के विरासत को ढोते-ढोते थक चुके इन कदमो पर इसका प्रभाव पड़ा तो आने वाली कितनी पीढ़ी इससे प्रभावित होगी कहना मुश्किल है। खैर कुछ नया करने के लिए बिलकुल ५६ '' का चौड़ा सीना हो ये भी नहीं जरुरी है। किन्तु इन कदमो से बहुत सी छातियो में धड़कने सांय -सांय कर धड़कना शुरू कर दिया होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सब-कुछ करने के पहले शतरंज के विसात के आदि अगली चाल से पहले कौन इतिहास के झरोखे से झांकेगा ये तो अब आने वाला कल ही बताएगा।
परन्तु हमें तो बस आम जान की तरह अपने नायक के विषय में जो हकीकत है उतने से ही मतलब है। स्वभाबिक तौर पर अगर राष्ट्रनायक के विषय में कुछ दशको में गुजरे अतीत एक सच के रूप में सामने न आकर किस्से-कहानियों के रूप में वर्णन हो तो उस देश की प्राचीनतम इतिहास तो हमेशा संदेह के घेरे में रहेगा। अतः जो भी हो बस सच सामने आना चाहिए।
परन्तु हमें तो बस आम जान की तरह अपने नायक के विषय में जो हकीकत है उतने से ही मतलब है। स्वभाबिक तौर पर अगर राष्ट्रनायक के विषय में कुछ दशको में गुजरे अतीत एक सच के रूप में सामने न आकर किस्से-कहानियों के रूप में वर्णन हो तो उस देश की प्राचीनतम इतिहास तो हमेशा संदेह के घेरे में रहेगा। अतः जो भी हो बस सच सामने आना चाहिए।