जब यहाँ कुछ भी नहीं था
तब भी बहुत कुछ था
कुछ होने और न होने की
कयास ही बहुतो के लिए
बहुत कुछ था।
फिर मै बैचैन क्यों होता हूँ
की अब मेरे मन में क्या है ?
नहीं कुछ उमड़ने घुमड़ने पर भी
कही न कही अंतस के किसी कोने में
कुछ बुलबुले छिटक उठते है
और अपनी नियति में
जाने कहाँ सिमट जाते है।
इन बुलबुले से किसी
धार बन जाने की चाहत में
बस बुलबुले का बनना और
मिट कर शून्य में विलीन हो जाना
मन में एक क्षोभ जाने क्यों
भर जाता है।
अनायास कितने प्रकार के
तरंग छिटक जाते है
कुछ समेटु उससे पहले ही
कितने विलीन हो जाते है।
किन्तु एक बुलबुले में खोना भी
कितना कुछ कह जाता है।
शून्य सा दिखता ,शून्य को समेटे
शायद सब शून्य है,ऐसा कह जाता है।
बाह्य प्रकाश के पाने से
कैसी सतरंगी छटा छटकती है
खाली मन को भी
उम्मीदों के कई रंग भर जाती है।
शून्य मन क्या शांत और गंभीर है,
या इस निर्वात को भरने की
झंझावती तस्वीर है ,
जद्दोजहज जारी है
मन में कुछ नहीं होना
क्या बहुत कुछ का होना तो नहीं है ?
तब भी बहुत कुछ था
कुछ होने और न होने की
कयास ही बहुतो के लिए
बहुत कुछ था।
फिर मै बैचैन क्यों होता हूँ
की अब मेरे मन में क्या है ?
नहीं कुछ उमड़ने घुमड़ने पर भी
कही न कही अंतस के किसी कोने में
कुछ बुलबुले छिटक उठते है
और अपनी नियति में
जाने कहाँ सिमट जाते है।
इन बुलबुले से किसी
धार बन जाने की चाहत में
बस बुलबुले का बनना और
मिट कर शून्य में विलीन हो जाना
मन में एक क्षोभ जाने क्यों
भर जाता है।
अनायास कितने प्रकार के
तरंग छिटक जाते है
कुछ समेटु उससे पहले ही
कितने विलीन हो जाते है।
किन्तु एक बुलबुले में खोना भी
कितना कुछ कह जाता है।
शून्य सा दिखता ,शून्य को समेटे
शायद सब शून्य है,ऐसा कह जाता है।
बाह्य प्रकाश के पाने से
कैसी सतरंगी छटा छटकती है
खाली मन को भी
उम्मीदों के कई रंग भर जाती है।
शून्य मन क्या शांत और गंभीर है,
या इस निर्वात को भरने की
झंझावती तस्वीर है ,
जद्दोजहज जारी है
मन में कुछ नहीं होना
क्या बहुत कुछ का होना तो नहीं है ?