सच तो यही है कि
हर रोज श्वेत प्रकाश की किरण
बिखर जाते है कोने कोने में
किन्तु भेद नहीं पाती
मन के अँधेरी गुफाओं को।
और हमें भान है कि
हमने पढ़ लिया सामने वाले के
चेहरे पर उठने वाली हर रेखा को
जो मन के कम्पन से स्पंदित हो उभर आते है।
फिर सच तो यह भी है कि
तम घुप्प अँधेरी चादर के
चारो ओर बिखरने के बाद भी।
हलकी सी आहट बिना कुछ देखे ही
मन में उठने वाली स्पन्दन से
चेहरे पर उभरे भाव को पढ़ने के लिए
रौशनी के जगनूओ की भी जरुरत नहीं
और हमारा मन देख लेता है।
चारो ओर बिखरे अविश्वास की परिछाई
जाने कौन से प्रकाश का प्रतिबिम्ब है
जिसमे देख कर भी एक दूसरे को
समझने की जद्दोजहद जारी है।
कुछ तो है की मन के कोने
विश्वास कि किरणों से दूर है।
क्यों न मिलकर ऐसा दीप जलाये
जो दिल में घर अँधेरे को रौशन करे
और हम कहे -"तमसो माँ ज्योतिर्गमयः" ।।
दीपावली कि हार्दिक शुभकामना
हर रोज श्वेत प्रकाश की किरण
बिखर जाते है कोने कोने में
किन्तु भेद नहीं पाती
मन के अँधेरी गुफाओं को।
और हमें भान है कि
हमने पढ़ लिया सामने वाले के
चेहरे पर उठने वाली हर रेखा को
जो मन के कम्पन से स्पंदित हो उभर आते है।
फिर सच तो यह भी है कि
तम घुप्प अँधेरी चादर के
चारो ओर बिखरने के बाद भी।
हलकी सी आहट बिना कुछ देखे ही
मन में उठने वाली स्पन्दन से
चेहरे पर उभरे भाव को पढ़ने के लिए
रौशनी के जगनूओ की भी जरुरत नहीं
और हमारा मन देख लेता है।
चारो ओर बिखरे अविश्वास की परिछाई
जाने कौन से प्रकाश का प्रतिबिम्ब है
जिसमे देख कर भी एक दूसरे को
समझने की जद्दोजहद जारी है।
कुछ तो है की मन के कोने
विश्वास कि किरणों से दूर है।
क्यों न मिलकर ऐसा दीप जलाये
जो दिल में घर अँधेरे को रौशन करे
और हम कहे -"तमसो माँ ज्योतिर्गमयः" ।।
दीपावली कि हार्दिक शुभकामना