समां गए गत वर्ष अनंत में,
क्या खोया क्या पाया हमने,
करे विवेचन स्व के मन में। ।
नए ओज उत्साह का भान कर,
स्व से विमुक्त हम का मान कर,
सम्पूर्ण धरा सुख से हो संवर्धित,
मनुज सकल को हो सब अर्पित। ।
घृणा ,क्रोध,सब असुर प्रवृति,
दिन-हिन् दारिद्र्य सी वृति,
बीते काल समाये गर्त में,
न हो छाया इसकी नव वर्ष में। ।
मंगल मन मंगल सी भावें,
ह्रदय मनोरथ और जो लावें,
कृपा दृष्टि सदा नभ से बरसे,
न कोई वंचित उत्कर्ष मन हर्षे। ।
कटु सत्य यथार्थ भी कुछ है,
नागफनी, कहीं चन्दन वृक्ष है ,
पर जिजीविषा हर जगह अटल है ,
घना तिमिर अरुणोदय पल है। ।
कटु सत्य यथार्थ भी कुछ है,
नागफनी, कहीं चन्दन वृक्ष है ,
पर जिजीविषा हर जगह अटल है ,
घना तिमिर अरुणोदय पल है। ।
यश अपशय से ऊपर उठकर ,
सहज भाव आत्म सुख से भरकर,
नव आलोक मुदित सब मन हो
नव वर्ष सबको मंगलमय हो। ।