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Sunday, 1 September 2013

न्याय-अन्याय


                                                                           चित्र :गूगल साभार 
कितने मोम पिघल गए ,
जो न्याय पाने के लिए जलाये गए 
पिघले हुए खुद में एकाकार हो गए 
क्या गर्म होना, जब बेकार हो गए। 
किसके साथ अन्याय हुआ ?
न्याय ने सिर्फ खुद से न्याय किया। 
उसे रुंह के झकझोड़ने से कोई सिहरन नहीं होता, 
सिसकते चीत्कार से कान मर्म नहीं होता ,
देखकर भी वो देखता नहीं है, 
आँखों में जड़े पथ्थरों से 
क्या कभी, काम भी  होता है ? 
लिखी हुई हर्फो को देखता है, 
आज में नहीं कल में ढूंढ़ता  है। 
उम्र कम है कुकर्म का मिसाल है ,
क्या करे लिखे पर चलना यहाँ आचार है। 
कुछ और ऐसे मिसालो की तलाश है, 
नाबालिग को बालिग करना क्या मामूली बात है।  
इंतजार तब तक न्याय करेगा, 
भला अभी क्यों खुद से अन्याय करेगा।