किस फलसफे पर जाऊं
मौत की युक्तियां तलाशें
या सिर्फ जिंदगी को गले लगाऊं ।।
खिंची है कितनी दीवारें
हर नजरो में नजर तलाशती है ,
हमें शक न हो अपनों के मंसूबो पर
इसलिए सरहद पर जमाये बैठे है ।।
बुझ रहे खुद के दियें हर रोज
इसकी किसी को कोई खबर नहीं ,
रह रह कर जला दो उसे
हर तरफ शोर ये सुनता ।।
भूख से कोई मरे इसमें कोई तमाशा नहीं
खुद कि बदनीयत पे कौन शक करे ,
शुक्र है की वो बगल में पाक सा है
उसी की ख्वाहिस का इल्जाम क्यों न करे ।।
अपनों से ही मासूम से सवाल पर उबल जाए
लगता है रक्त की तासीर बदल सी गई है ,
शायद इन लाशों में बहुत कुछ छिपा है
जमाये गिद्ध की नजरो से पूछो जरा ।।
बहुत माकूल अब माहौल है
वो अपना भी लिबास हटा देते है ,
कई सालो के सब प्यासे है
एक रक्त का दरियां क्यों न बहा देते है ।।
किस फलसफे पर जाऊं
मौत की युक्तियां सुझाऊं
या सिर्फ जिंदगी को गले लगाऊं ।।