आप इस बात को जीतना जल्दी समझ ले कि ये विषराज "कोविडानंद-उन्नीस" किसी भी रूप में रक्तबीज राक्षस से कम नही है। असुर रक्तबीज की कहानी आपने पढ़ा होगा।देवासुर संग्राम में रक्तबीज का प्रसंग आज के स्थिति में शायद प्रासंगिक है।वह एक ऐसा शक्तिशाली राक्षस था,जिसके शरीर से खून की एक-एक बूँद गिरने पर उतने ही रक्तबीज राक्षस पैदा हो जाते थे।इस प्रकार यह अनेक युद्ध जीता। उसके पश्चात देवताओ के अनुरोध पर माँ दुर्गा को काली के विकराल रूप में प्रकट होकर, रक्तबीज से युद्ध करना पड़ा। किन्तु जब -जब रक्तबीज पर प्रहार होता उससे गिरने वाले रक्त से एक नया रक्त बीज पैदा हो जाता। तब माँ काली ने अपनी जीभ का विस्तार किया और गिरने वाली हर रक्तबन्द को जीभ पर ले अपने अंदर ले लिया और इस प्रकार असुर रक्तबीज का वध कर दिया।
अर्थात ये "लॉक डाउन" भी उसी का विस्तार है ताकि हर कोई इसे अपने अंदर लेकर इसके विस्तार को खत्म कर दे नही तो यह रक्तबीज की तरह बढ़ता जाएगा और आपको अपनी और औरो की इच्छा के प्रति काली की तरह रौद्र रूप धारण करना पड़ सकता है।
कहते है महाभारत के युद्ध के तीसरे दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म का वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाते, जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं। जबकि श्रीकृष्ण ने युद्ध मे शस्त्र नही उठाने को प्रतिज्ञाबद्ध थे।अतः अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना के साथ पूरे उत्साह के साथ युद्धरत होना पड़ा। फिर भी अठारह दिन लग गए।
आज "लॉक डाउन" का तीसरा दिन है और यह दिख रहा है कि लोगो को इस युद्ध मे लड़ने से हतोत्साहित होकर नियमो को भंग करने को आतुर हो रहे है। इस विषराज "कोविडानंद-उन्नीस" से युद्ध इक्कीस दिनों में समाप्त हो जाएगा इसकी संभावना कम है। फिर भी हतोत्साहित होने की जरुरत नही है। क्योंकि बल्कि राम-रावण युद्ध भी चैरासी दिनो तक चला था। अतः अपने उत्साह में कमी न आने दे, इस युद्ध मे आप ही कृष्ण है और आप ही अर्जुन।
पुनः आधुनिक संजय(मीडिया) से युद्ध की खबर ले। कुरुक्षेत्र के इस मैदान में जिन योद्धाओं की जरूरत है ,वो युद्धरत दिख रहे है,आप इनकी लड़ाई को आगे न बढ़ाये ।घर में बैठने पर भी आपको योद्धा रूप में स्वीकार किया जाएगा। बाकी आपकी मर्जी....