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Sunday, 7 June 2020

बढ़ते आकंड़े.....कोरोना डायरी

                 आंकड़ो के बढ़ते उफान से भावनाओ को विचलित न होने दे,सिर्फ संवेदनशील होने की जरुरत है। आपका व्यस्त दिनचर्या आपको इसकी इजाजत नहीं देगा ।क्योकि आप चाहते हुए भी खुद से मजबूर है और शासन,अर्थ की व्यवस्था से मजबूर है। यह भी खबर में चलचित्र की भांति आएगा, आरोपो और प्रत्यारोपो के बीच समय खबरनवीस को खबर पर बने रहने की इजाजत नहीं देगा । क्योंकि समय की अपनी रफ़्तार है जिसके किसी भी नोक पर आप रुक नहीं सकते। 

                    हम एक  अँधेरी साया के तले सफर कर रहे है, खैर मना सकते है कि इस पर भी सब कुछ दिखने का आप भ्रम पाले हुए है। यह कुछ "वादों" को लेकर सिर्फ "विवादो"  का कारण है ऐसा नहीं , जीवन को जीने के लिए जीवन को खोने के संघर्ष की गाथा पुरातन से नवीनतम की धुरी पर काल चक्र की भांति अग्रसर है।  हम फिर भी अभिमान से अतिरंजित है......धरती को सींचकर जीवन फसल उगाने वाले किसान हो या श्रम साध्य वर्ग की पलायन गाथा हो।जो  जीवन दृष्टि की तलाश में कैसे कितने कदम मंजिल पूर्व ही ठहर गए या मंजिल की तलाश में कहीं विलीन हो गये।जीवन निर्वहन के लिए याचनाओं के वाचक समूह की रक्तिम सिचाई परती हृदयकथा सी है।

                     मैं वाकई इससे भ्रमित हूं ...सीमाओं के बंधन में चिंता की लकीरें खिंच रही है...जो स्वयं के विरोधाभासी द्वन्द की रेखा लगाती है....? फिर आप अपने ही लोगो से ऐसा व्यवहार इस कोरोना काल मे करते है,जो स्वयं में अपेक्षित नही होता है। शासन से बंधे होने की दुश्वारियां आपके समग्र मष्तिष्क को हर बदलते आदेश के साथ कितना दिग्भ्रमित करता है...जो सिंघासन से बंधे होते है, वो अनुभव करते है। एक ही समय के लिए एक ही तथ्य के अर्थ को आप कैसे सुविधानुसार व्यख्या करते है, ये जानते हुए भी की इन तथ्यों का सत्य और असत्य के किसी मानदंड से कोई सरोकार न होकर सिर्फ आप निष्पादन की प्रक्रिया को पूरा कर रहे है। फिर इन विरोधाभाषी चिंत्तन में पड़ते है तो कई प्रकार के विरोधाभास में विचरण करते है।

                  यह समय विरोधाभास का है, इसलिए ज्यादा भ्रमित न हो और संभव हो तो घर मे रहे और बाहर निकले तो मास्क लगाए।ताकी आपका विरोधाभासी चेहरा किसी को नजर न आये और आप कोरोना से सुरक्षित भी रहे.....है कि नही....आप भी सोचिये ...।।

Friday, 29 May 2020

बदलते तराने..कोरोना डायरी

                  कोरोना काल ने दिन-प्रतिदिन चित्रहार और रंगोली की तरह लोगो के मन विभिन्न रागों के कई तान छेड़े और न जाने कितने रंग भरे है। लॉक-डाउन -1की शुरुआत से पहले ही हम थाली, घण्टा-घड़ियाल और शंख नाद से मोहित हो रखे थे और लगा ये कुछ दिनों की ही बात है।  तो लॉक-डाउन-1 के शुरू-शुरू में बॉबी फ़िल्म का ये गाना गूंजने लगा-
हम-तुम एक कमरे में बंद हो
और चाभी गुम हो जाये।।
            यहाँ चाभी गुम तो नही हुए लेकिन दरवाजे बंद तो हो गए। बंद दरवाजा भला कब तक अच्छा लगता।अब दिनों के बढ़ते कारवें उस रस की मधुरता को सोखने लगा। तो अब युगल स्वर लहरी खिड़कियों के झरोखे से तैर कर बाहर गूंजने लगा -
चलो इक बार फिर से
अजनबी बन जाएं हम दोनों ,
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से।।

         अब तक दिन लॉक-डाउन 2 और 3 के सफर पर निकल गया तो दिल कुछ और गमगीन भी हो चला।किन्तु इसी बीच अर्थव्यवस्था की दवाई हेतु दारू की दुकान खुल गई फिर जैसे ये धुन गूंजने लगा-चार बोतल वोडका ,काम मेरा रोज का तो किसी ने ये राग छेड़ दिया- लोग कहते है मैं शराबी हूं...।
          तो फिर जिनके लिए इन बीच दो जून के खाने नही नसीब हुए होंगे ,वो तो भगवान और इंसान को रह-रह कर ऐसे ही कोसते होंगे-
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान
की कितना बदल गया इंसान।।

         गिरते-पड़ते कदम अगर दिन काटने में सक्षम दिखे तो खैर चल रहे होंगे, लेकिन जिनकी तस्वीर भयावह हो वो भला आहे भरकर कुछ यही गुनगुना रहे होंगे-
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया
ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।।

                 इस लंबे सफर के बाद फिर कुछ कुछ खुले और कुछ -कुछ बंद सा लॉक-डाउन 4 का ताला लटका दिया गया।टीवी पर प्रवासी मजदूरों की बदहाल तस्वीर रह-रह कर टीआर पी के साथ होड़ में लग गए। व्यवस्था से निराश और हताश,जिनका सबसे भरोसा टूट गया वो पलायन की व्यथा शायद फ़िल्म "भरोसा" के इसी पंक्तियों से जाहिर कर विरहा रूप में ही गया रहे होंगे -
" इस भरी दुनिया में, कोई भी हमारा न हुआ
 गैर तो गैर हैं, अपनों का भी सहारा न हुआ ।

         इस बीच  इंद्रप्रस्थ के सिंघासन से बंधे सेवक  जो खुश होकर कोरोना के चिराग से निकले जिन्न की दरियादिली समझ रहे थे और लॉक डाउन में छुट्टी के दिन में घिरने से खुशी में  फ़िल्म हेरा-फेरी का ये गाना बार-बार गाते होंगे-
देने वाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ के
किती किती कितना, किती किती कितना
दिक् ताना, दिक् ताना, तिकना तिकना ।।
 
              अब जैसे-जैसे तस्वीर साफ हो रही है की खाते से सारे छुटी की सफाई की योजना बन रही है शायद लगे कि सही में उनके साथ हेरा-फेरी हो गया । तो शायद बस ये गुनगुना सकते है-
हमसे क्या भूल हुई जो ये सजा हमको मिली
अब तो चारो ही तरफ बंद है दुनिया की गली।।

      किन्तु इस बीच-बीच मे कही कोरोना भी जैसे रह-रहकर  गुनगुना रहा है-
 तू जहाँ-जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा।।

    और इसकी रफ्तार को देख कर यही लग रहा है कि ये सिर्फ गुनगुना नही रहा है। बल्कि तेजी के साथ चल भी रहा है।
इसलिए संभव है तो बंद रहे सुरक्षित रहे...बाकी आपकी मर्जी..।। क्योंकि ये कोरोना काल अभी कौन-कौन से राग और रंग से मिलाएगा..कहना मुश्किल है..?

Tuesday, 28 April 2020

कोरोना डायरी... मानसिक संक्रमण

          अब हर दिन ये शब्द रह-रह कर गूंजता रहता  है ....... लॉक -डाउन ...शंशय से प्रश्न दिमाग मे कौंधने लगते है..कब तक चलेगा? फिर बढ़ते आंकड़े.. और फिर  केंटोनमेंट जोन, रेड ज़ोन, ऑरेंज जॉन... ग्रीन जोन। फिर नजर ..विदेश के कोरोना भ्रमण.. उसके बाद... सवाल देश का ...फिर राज्यो की स्थिति...अब जिला का सवाल और  फिर अंत मे ..कही हमारे आस-पास तो नही है ?

                 स्वयं को सुरक्षित के भाव से भरने के बाद जब अगल-बगल निहारो तो हर अगला जैसे कोविडासुर का वाहक लगता है।उस पर कोई अपरचित अगर किसी भी वजह से  राह रोक  दिया तो लगता है जैसे कोविडासुर माया से रूप बदल कर  मिलने आ गया है। बिल्कुल "कुएं में भांग मिलना" वाले मुहावरे को चरितार्थ कर रहा है।

               वैसे भी मास्क लगाना अब नियति है और लगता तो यही है कि हम सब शर्मिंदगी के कारण बस प्रकृति से अपना चेहरा छुपा रहे है। वैसे भी  इस मास्क में अब हर कोई अजनबी ही हो गया है।

           समाचार चैनल आपको इस  गाथा को सुना-सुनकर दिमागी रूप से ऐसा संक्रमित कर देंगे कि उसकी जांच के लिए कोई "टेस्ट किट" भी उपलब्ध हो पायेगा, कहना मुश्किल है। इसलिए अपने आपको को इस बीमारी के हालात से सिर्फ "अपडेट" करे नही तो "आउट डेट" होने की भी गुंजाइश हो सकता है..? अगर रह सकते तो घर मे रहे स्वस्थ रहे। बाकी आपकी मर्जी...।।

Saturday, 25 April 2020

कोरोना डायरी.....दो गज दूरी

               दो गज दूरी तो बनाया जा सकता है। किंतु वो तो तब है जब बाहर निकलने की संभावना बने। लगभाग एक मास का सफर "ताला-बंदी" में निकल चुका है। इतना चलने के बाद भी अभी तक दो गज फासले पर अटके हुए है।किन्तु अभी भी इस दो गज दूरी का और कोई कारगर विकल्प दिख नही रहा है और ये स्वभावतः संभव नही, अतः लॉक-डाउन के अलावा अन्य  बाकी इलाज तो बस प्रयासरत कर्म ही है।

                   लियो टॉलस्टॉय की एक प्रसिद्ध कहानी है। जिसमे किरदार एक गांव में अपने लिए जमीन खरीदने जाता है।गाँव वाले की शर्त के अनुसार एक तय राशि पर वह सूर्योदय से सूर्यास्त तक पैदल जितना जमीन, जिस जगह से नापना शुरू कर वापस वही तक नापता पहुच जाता है तो वह पूरा जमीन उसका हो जाएगा।अन्यथा राशि जब्त हो जाएगा।  शर्त के अनुसार वह दिन भर ज्यादा से ज्यादा जमीन नापने के लालच में दिन भर भागता रहा, लेकिन उसे सूर्यास्त से पूर्व जहाँ से चलना शुरू किया वही पहुचना होता है।  अतः वह ज्यादा से ज्यादा भागता रहा और जब वह शुरुआत की जगह पहुचता है तो उसके प्राण निकल जाते है। इसके बाद गाँव वाले उसे वही लगभग दो गज जमीन में दफना देते है ।

                         कहानी तो मूलतः लालच को केंद्र बिंदु पर लिखा है और वर्तमान भी वही है। लॉक-डाउन से बाहर निकलने की लालच, फिर से वही भागमभाग की जल्दी, जबकि सब जानते और समझते हुए भी की इस भागम -भाग  मे दो गज की दूरी बनाये रखना कितना कठिन प्रतीत होता है।इसलिए अमेरिका जैसे महाशक्ति इस बात को नही समझ पाए और असमय कई दो गज जमीन में समा गए।

                वैसे तो दधीचि ऋषि की कहानी तो आप जानते ही है।जब देवलोक पर वृतासुर नामक राक्षस ने अपना अधिकार कर लिया था।तब बाद में ब्रह्मा जी ने देवताओं को एक उपाय बताया कि पृथ्वी लोक में 'दधीचि' नाम के एक महर्षि रहते हैं। यदि वे अपनी अस्थियों का दान कर दें तो उन अस्थियों से एक वज्र बनाया जाये। उस वज्र से वृत्रासुर मारा जा सकता है, क्योंकि वृत्रासुर को किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। महर्षि दधीचि की अस्थियों में ही वह ब्रह्म तेज़ है, जिससे वृत्रासुर राक्षस मारा जा सकता है।तब इंद्र के अनुरोध पर दधीचि ने उक्त प्रयोजन में अपने अस्थियो का दान कर दिया।

            इस कोविडासुर के दमन के लिए अब लगता है लोगो को अपने और दिनों का दान करना होगा। अभी तक के अनुभव तो यही कह रहे है कि इसके संहार के लिए और अतिरिक्त कोई अस्त्र नही दिख रहा है।बाकी आपकी मर्जी...

Friday, 17 April 2020

कोरोना डायरी

           संघर्ष के दौर में विभिन्न प्रकार के लहरे हिचकोले लेते रहेंगे। पर इन लहरों पर सवार होकर कोई सागर लांघ जाए ऐसा तो नही होता और कोई डर के तट पर ही बैठा रह जाये यह भी नही हो सकता। फिर इस संक्रमण के दौर में संघर्षरत वीर हतोत्साहित हो जाये तो क्या?क्या आश्चर्य नही की संक्रमण से ग्रसित शरीर खुद के इलाज की जगह भस्मासुर बन इधर-उधर छुप रहा है,तो फिर उसका मंतव्य और प्रयोजन क्या हो सकता है?

                 इसलिए कोविडासुर संक्रमण के दौर में, सिर्फ बीमारी नही बल्कि इसे काल और समय का संक्रमण समझे ।साझा संस्कृति की गंगा-जमुना तहजीब की वकालत करते उदारपंथी इसको समझने की कोशिश करे कि गंगा तो अब भी अपने देश और मानव धर्म की निष्ठा के साथ वैसे ही अक्षुण है। किंतु जमुना की रवायत में अब भी कालिया नाग के जहर का असर है।जिसका प्रदर्शन रह-रह कर होता रहता है।

          जब काल संक्रमित होता है तो समय की धार में नदियों के बहाव के तरह गंदगी और दूषित पदार्थ कही किनारे में जमा होने लगते है।ये वैसे ही गंदगी की तरह मैले मटमैले धार में झाग बन उबल रहे है। ये पत्थर चलाते पुरुष और महिला उसी दूषित और संक्रमित मानसिकता के परिचायक है।जिनके लिए देश के मुख्य राह की जगह सिर्फ अपने एकांगी रास्ते का अनुसरण करना है।यह सिर्फ एक विरोध की नकारात्मक प्रदर्शन नही है।बल्कि उस आदिम सोच की हिंसात्मक प्रवृति और विचार जो  अब भी जेहन में पोषित है। जिसके लिए वसुधैव कुटुम्बकम कोई मायने नही रखता है। बल्कि राष्ट्र रूपी गंगा की धारा जो प्लावित हो रही है, उसमे संक्रमित हो रखे प्रदूषित सोच और उस अनर्गल प्रलाप का धोतक है। जिसे हम विभिन्न वाद और निरपेक्षता के ढाल में और पनपने दे रहे है।स्वभाविक रूप से नदी की धार को काट कर अलग कर दिया जाय तो वह अपने स्वत्रन्त्र इकाई के रूप से किसी और रूप में परिवर्तीत हो जाती है।विगत यह हो चुका है और उसका परिणाम सब देख रहे है।इसलिए यह तो स्वयं सिद्ध है ।अतः इस दूषित मानसिकता के स्वच्छता अभियान के लिए निश्चित ही शारीरिक संक्रमण के साथ-साथ मानसिक संक्रमण को भी नियोजित किया जाय और इसके लिए भी प्रयोजन आवश्यक है।

                 आश्चर्य नही की इतने बड़े कुनबे में एक आवाज आती है उन मूर्खो और जोकरों के लिए, तो क्या अन्य बाकी आदर्श और सिद्धान्त की ढोल पीटने वाले इस बार मूक या बधिर हो गए है।एक आवाज तो नक्कारखाने में तूती की तरह विलुप्त हो जाएगी। फिर मीडिया उस एक के आवाज को कोरस के रूप में गाने लगता है।सहृदय उदार दिखने के लोलुप आत्मप्रवंचना में उसे उसे सिर्फ कुछ लोगो के करतूत के रूप में देखे तो आश्चर्य है। फिर इतना तो लगता है इस मानसिकता को या तो पढ़ पाने में अक्षम है या फिर उदारवाद के दिखावा में वास्तविकता से दूर रहना ही श्रेयस्कर समझ रहे है।

             असमंजस का यह दौर जितना किरोना के कारण भयावह नही है उससे ज्यादा भयावह तो वो सोच और मानसिकता है जो इस कोविडासुर के कारण अस्पष्ट रूप से कई जगह परिलक्षित हो रहा है।समय रहते सभी प्रकार के संक्रमण को इलाज नही होता है तो ये किसी न किसी रूप में रह-रह कर देश को बीमार करते रहेंगे। क्योंकि संक्रमित शरीर से  कही ज्यादा खतरनाक संक्रमित सोच और बीमार मानसिकता है।

कोरोना डायरी

द्वंद अभी न मंद हो
उत्साह और उमंग हो।
एक विकल्प यही सही
घर मे सब बंद हो ।।

कुछ छिटक गए कही
बिखर गए इधर उधर।
छद्म भेष धर लिए
पहुच गए नगर डगर।।

कोरोना सा काल ये
जुनून सर पर लिए।
बुझ न जाये कही
मनुज हित के दिए ।।

है लगे यहाँ वहाँ
जो जिंदगी के जंग में।
वो टूट न जाये कही
अराजको के संग में ।।

मानवता संतप्त और त्रास है
ये विश्व समर का काल है।
कोविडासुर का अब
निश्चय ही संहार है।।

Friday, 27 March 2020

कोरोना डायरी-3

                    आप इस बात को जीतना जल्दी समझ ले कि ये विषराज "कोविडानंद-उन्नीस" किसी भी रूप में रक्तबीज राक्षस से कम नही है। असुर रक्तबीज की कहानी आपने पढ़ा होगा।देवासुर संग्राम में रक्तबीज का प्रसंग आज के स्थिति में शायद प्रासंगिक  है।वह एक ऐसा शक्तिशाली राक्षस था,जिसके शरीर से खून की एक-एक बूँद गिरने पर उतने ही रक्तबीज राक्षस पैदा हो जाते थे।इस प्रकार यह अनेक युद्ध जीता। उसके पश्चात देवताओ के अनुरोध पर माँ दुर्गा को काली के विकराल रूप में प्रकट होकर, रक्तबीज से युद्ध करना पड़ा। किन्तु जब -जब रक्तबीज पर प्रहार होता उससे गिरने वाले रक्त से एक नया रक्त बीज पैदा हो जाता। तब माँ काली ने अपनी जीभ का विस्तार किया और गिरने वाली हर रक्तबन्द को जीभ पर ले अपने अंदर ले लिया और इस प्रकार असुर रक्तबीज का वध कर दिया। 

           अर्थात ये "लॉक डाउन" भी उसी का विस्तार है ताकि हर कोई इसे अपने अंदर लेकर इसके विस्तार को खत्म कर दे नही तो यह रक्तबीज की तरह बढ़ता जाएगा और आपको अपनी और औरो की  इच्छा के प्रति काली की तरह रौद्र रूप धारण करना पड़ सकता है।

                 कहते है महाभारत के युद्ध के तीसरे दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म का वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाते, जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं। जबकि श्रीकृष्ण ने युद्ध मे शस्त्र नही उठाने को प्रतिज्ञाबद्ध थे।अतः अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना के साथ पूरे उत्साह के साथ युद्धरत होना पड़ा। फिर भी अठारह दिन लग गए।

              आज "लॉक डाउन" का तीसरा दिन है और यह दिख रहा है कि लोगो को इस युद्ध मे लड़ने से हतोत्साहित होकर नियमो को भंग करने को आतुर हो रहे है। इस विषराज "कोविडानंद-उन्नीस" से युद्ध  इक्कीस दिनों में समाप्त हो जाएगा इसकी संभावना कम है। फिर भी हतोत्साहित होने की जरुरत नही है। क्योंकि बल्कि राम-रावण युद्ध भी चैरासी दिनो तक चला था। अतः अपने उत्साह में कमी न आने दे, इस युद्ध मे आप ही कृष्ण है और आप ही अर्जुन।

                पुनः आधुनिक संजय(मीडिया) से युद्ध की खबर ले।  कुरुक्षेत्र के इस मैदान में जिन योद्धाओं की जरूरत है ,वो युद्धरत दिख रहे है,आप इनकी लड़ाई को आगे न बढ़ाये ।घर में बैठने पर भी आपको योद्धा रूप में स्वीकार किया जाएगा। बाकी आपकी मर्जी....

Tuesday, 24 March 2020

कोरोना डायरी

हमे कभी-कभी बड़ा कोफ्त होता है। हमे किसी ऐतिहासिक घटनाक्रम के साक्षी होने का मौका अब तक नही दिखा। लेकिन अब एक मौका आखिर कोरोना ने दे ही दिया। गंभीर तो इसके प्रति हम पहले ही दिन से थे, लेकिन आने वाला कल इतना उथल-पुथल वाला होने जा रहा है, इसका अंदाज न था।
           इससे पहले भी कई बीमारी नाम बदल-बदल कर आते रहे है। कभी सार्स, तो कभी मार्स, कभी बर्ड फ्लू उड़ने लगा तो कभी स्वाइन फ्लू छाया, कभी एंथ्रेक्स से घबराए रहे।
         लेकिन ये कोरोना ने तो वाकई घटनाक्रम में ऐतिहासिक मोड़ ले आया। कोविड-19 अब इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया। जब देश सबसे लंबे लॉकडाउन के दौर से गुजरेगा।
         ज्यादा दुखी होने की कोई जरूरत नही है।अब इसके अलावा कोई चारा भी नही है।"सटले तो गइले" कई दिनों से सोशल मीडिया पर सचेत किया जा रहा था। लेकिन आप हम है कि मानते नही। फिर ये चेताया कि हॉस्पिटल में इतने बेड नही है कि आपको रखना संभव हो और फ़ोटो फ्रेम किसी को भला क्यों कबूल हो फिर घर के अलावा और कोई दूसरा उपाय अब तक किसी एक्सपर्ट ने बताया नही।
     अतः घर की चहारदीवारी ही आपकी लक्ष्मणरेखा है। जाने कब से सभी भागने में व्यस्त थे। थोड़ा मौका मिला है सुस्ता ले और घर मे बैठे-बैठे कहानी बुनिये। ताकि आने वाले समय मे आप भी कहानी सुना सके कि  एक बार जब "कोरोना विष राक्षस" के महापराक्रमी पुत्र "उन्निसानन्द कोविड" को आपने घर मे बैठे-बैठे ही परास्त कर दिया। इस ऐतिहासिक घटना क्रम में आपके योगदान को आने वाली पीढ़ी सराहेगी और जब आप से बार-बार ये पूछेगी की बताइए न आखिर बिना अस्त्र और शस्त्र के आपने "उन्निसानन्द कोविड" को कैसे परास्त कर दिया?
         और फिर आप सिर्फ बिना कुछ कहे मुस्कुरायेंगे। भला क्या कहेंगे ..जब मानव मंगल ग्रह पर घर बनाने की बात सोच रहा था, तब भी हम सब के पास "उन्निसानन्द कोविड" को हराने के लिए घर मे बैठने के बिना और कोई कारगर अस्त्र नही था।