द्वंद अभी न मंद हो
उत्साह और उमंग हो।
एक विकल्प यही सही
घर मे सब बंद हो ।।
कुछ छिटक गए कही
बिखर गए इधर उधर।
छद्म भेष धर लिए
पहुच गए नगर डगर।।
कोरोना सा काल ये
जुनून सर पर लिए।
बुझ न जाये कही
मनुज हित के दिए ।।
है लगे यहाँ वहाँ
जो जिंदगी के जंग में।
वो टूट न जाये कही
अराजको के संग में ।।
मानवता संतप्त और त्रास है
ये विश्व समर का काल है।
कोविडासुर का अब
निश्चय ही संहार है।।
उत्साह और उमंग हो।
एक विकल्प यही सही
घर मे सब बंद हो ।।
कुछ छिटक गए कही
बिखर गए इधर उधर।
छद्म भेष धर लिए
पहुच गए नगर डगर।।
कोरोना सा काल ये
जुनून सर पर लिए।
बुझ न जाये कही
मनुज हित के दिए ।।
है लगे यहाँ वहाँ
जो जिंदगी के जंग में।
वो टूट न जाये कही
अराजको के संग में ।।
मानवता संतप्त और त्रास है
ये विश्व समर का काल है।
कोविडासुर का अब
निश्चय ही संहार है।।
बहुत सुन्दर सामयिक अभिव्यक्ति।
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