Showing posts with label विरोध. Show all posts
Showing posts with label विरोध. Show all posts

Monday 2 September 2013

मन का आपातकाल

सरसराहट ,हलचल ,लहर ,तूफान 
सभी उठते है मन में कई बार 
पर टकराकर न जाने किस तट से
कही  गुम हो जाते  है। 
चाहता हूँ की खेलूं इन लहरों से 
पर रशोई की चिंगारी या बच्चे की किलकारी 
जिससे शायद ढंका है मन का दिवार   
ये लहर भेद नहीं पाते और भटक जाते है। 
कही कोने में अक्सर 
शुन्य का भंवर घुमड़ता है 
निरीह क्रंदन ,बेवस आँखे 
सेवक का जनता से  
विश्वासघात की बाते 
और न जाने क्या -क्या 
उस भंवर में सिमट आता है। 
सब कुछ लीलता है बिलकूल 
चक्रवात की तरह और फिर 
सिमट पड़ता है मन के किसी कोने में निर्जीव
सुनामी के बाद के प्रहार की तरह। 
आपातकाल मन में छा जाता है 
हम उठते है उसके बाद 
तंत्रिकाए -स्नायू तंत्र सभी 
इनसे उबरने के प्रयास में लग जाते है।  
पुनः शब्दों को संजोते है 
खामियों  की स्याही में भिगोंते है 
वाक्यों का विन्यास नए रूप में आता है 
एक बार पुनःकुछ-कुछ पहले जैसा  
मन का आपातकाल चला जाता है। ।