(चित्र :गूगल साभार )
एक रोज सुबह -सुबह दरबार में,लाल-पीले यमराज ,
बोले अबतक क्यों नहीं आया, चित्रगुप्त महराज।।
उनको बोलो जाकर जल्दी,सभी बही खता ले आएगा,
पृथ्वी लोकआयोग का फाइल जल्द यहाँ भेजवायेगा।।
कुछ दिनों से देख रहा हु, कुछ तो गड़बड़झाला है,
यमलोक के कामो पर अब उगली उठने वाला है। ।
जिसने जो भी कर्म किये है वैसा ही उपदान करो ,
जैसे भी हो लंबित मामले जल्दी से निपटान करो।।
तब तक भागे-भागे पहुचे वहा चित्रगुप्त महराज,
भाव-भंगिमा चिंतित मुद्रा, बोले जय महराज।।
बोले जय महराज गजब क्या अब घटना बोलू ,
नहीं मिल रहे फ़ाइल् अब क्या मुह मै खोलू।।
समझ कुछ नहीं आ रहा कैसे ये सब हो गया ,
मानव लोकआयोग का फ़ाइल् ही केवल खो गया।।
थी नामे कई बड़ी मानव, जिस पर था इल्जाम बड़ा ,
कैसे उसने सेंध लगाया द्वारपाल था जब खड़ा ।।
लगता है लंबित मानव ने कोई नई युक्ति लगाया
दीमक से साठ-गांठ या द्वारपाल रिश्वत से मिलाया। ।
यमराज की चडी त्योंरिया ,गरजे तब भरे दरबार ,
कोई केस न लो मानव का लिख भेजो ब्रह्म के द्वार।
पृथ्वी लोक के बाकी जीवात्मा वैसे ही चलेगा,
मानव को करो वर्जित तब यमलोक बचेगा। ।
पृथ्वी लोक के आत्मा भी अब स्वक्छ नहीं रह पाता
दूषित हवा पानी सब लेकर यहाँ संक्रमण फैलता।।
जिसका जो है कर्म का लेखा ,ब्रह्मा को सब भेजवाओ,
ले-लो साथ महेश का गण और वही सजा दिलवाओ। ।
तब विश्वकर्मा ने पृथ्वी पर ही दोनों रूप बनाया ,
मानव अपने कर्मो का फल तब से यही है पाया।।
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