Sunday, 12 March 2017

होली मुबारक.....

होली त्यौहार ही ऐसा है जो निकृष्ट पल के उदासीन माहौल में भी अपनी खनक छेड़ देता है। उदास पलो के भाव इस फागुनी बयार के झोंके में विलीन हो जाते है।  मन  पर छाये सुसुप्ता के भाव में रंगों की महक एक नए उत्साह और उमंग का  संचार कर देता है। फागुन के पलाश की दहक आसपास के मंजर को उत्साह के ताप से भर देती है। मन में जमे उदासी की बर्फ अब इसकी  ऊष्मा में पिघल कर रंगों के बयार के साथ घुल मिल गया है। ।।।।।आखिर होली है।।।।
       अपने पास बिखरे इन समूह में जो अब तक यही रुकने की मायुसी से दबे दिख रहे थे अचानक उसके चेहरे पर छाये मायूसी के परत को यह गुलाल का झोंका अपने साथ उड़ ले गया है। उनके उत्साह ये बिखरते गुलाल में मिल जैसे पुरे आसमान में छा जाना चाहते है। उत्साह और उमांग के ये नज़ारे होली की प्राकृतिक भाव को सबमे भर दिया है।।।।होली ऐसी ही है।।।

ये होली है जोगी... रा.....सा...रा..रा...रा
मस्त ढोलक की थाप और करतल की झंकार और फिर सामूहिक नाद........जोगी रा....रा...सा...रा..रा...
थिरकतें पाँव, लचकते कमर
चेहरे पर भांग की हरियाली,
हवा में गुलालों की लाली
मदमाती निगाहे,
सब पर छाई यौवन की नाशाएँ
क्या बच्चो की किलकारी,
कही गुब्बारे भर मारी
छिटक गए सब पे रंग,
खिल गये सब अंग अंग
बुढो में भर गया जोश,
और मृदंग  पर  दे जोर
सभी का रंग निखर गया और उल्लास में  सभी का स्वर बिखर गया....जोगीरा....रा...सा...रा..रा...।।।।।
            कही ब्रिज में कन्हैया ने होली की राग छेड़ी और राधा बाबली हो रंग गई ऐसी की अब तक निखरी जा रही है। भक्ति के रस पर प्रेम का राग इसी पल में चहुँ ओर कोयल की कूक सी चहकती है।कहते है काशी में भोले गंगा की  रेत को  गुलाल समझ खुद रंग शमशान में अपने डमरू की थाप पर खुद थिरकतें रह गए। ये विश्वनाथ पर भांग नहीं होली का नशा छा गया। जिस उत्सव को मनाने देव भी इन्तजार करे, वो ही  होली है।।।।।
          कसक तो परिवार से दूर होने का होता है वो भी जब होली हो। ना गुजिये की खुशबु न मठ्ठी की गंध और न ही पकवान के संग घुली प्रेमरस का स्वाद।बिलकुल खलता है। आखिर होली जो है।।।
            फिर उम्मीदों का रंग से सरोबार हो, गुलाल के झोंको  से आँख मिचौली अब भावो पर अपना प्रभाव दिखा दिया है और अवसाद के पल इन रंगों के खयालो से ही निखर गया है। तभी तो होली है।।।।।
       आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये।।।

Friday, 24 February 2017

घरौंदा की खातिर .....

घरौंदा की खातिर
रह रह कर बदलते है, बस चलते है।।
छोड़ कर सब कुछ
उसी की तलाश में
जिसे छोड़ चलते है।।
मैं मतिभ्रम में उलझ कर
इस भ्रम से निकलना चाहता हूँ।
जितना मति से मति लगाता
चकयव्यूह सा उलझता जाता हूं ।।
इन छोटे छोटे सोतों से
जब प्यास बुझती नहीं ,
किसी बड़े दरिया की तलाश में
मृगमरीचिका के पीछे पीछे
बस बढ़ता जाता हूं ।।
एक बड़े से घरौंदे के चाहत में
इन छोटे में कहाँ कभी ठहर पाता हूं ।।
इसी की देहरी पर
अगर खेल ले दोपहर की
छोटी सी परिछाई से
या शाम की धुंधलकी में
इन टिमटिमाते बल्ब की रौशनी से
कुछ अनमने से आवाज में भी
अपनेपन की आहट लगे ।
चाहता तो यह सब
फिर भी पता नहीं क्यों
घरौंदा की खातिर
रह रह कर  बदलते है बस चलते है। ।

Monday, 13 February 2017

आई ऍम विथ------इस पेज को लाइक करे।।।

                      आजकल फेसबुक पर फैन्स क्लब की भरमार है। न जाने बिभिन्न नामो से कितने पेज मिल जाएंगे। ये झुझारू लिखित वक्ता लगते है जो सदैव सरहद पर तैनात सिपाही की तरह विल्कुल मुस्तैदी के साथ अपने विरोधी के पेज पर नजर जमाये रहते है कही ऐसा न हो की पेज पर लॉच मिसाइल कुछ ज्यादा ट्रोल करे। इनके बीच की प्रतिद्वंदता मजेदार है। हम किसी से कम नहीं में तर्ज पर एक दूसरे पर नए नए जुमलो के तीर इनके तरकशों से निकलता रहता है।
              राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रद्रोही के सारे फॉर्मूले आपको इन पेजो पर उपलब्ध मिलेगे। कटाक्षो और तंज की ऐसी बारिश इन पेजो पर होती है कि एक निष्पक्ष व्यक्ति के लिए इनके छीटे भी उसे धर्मसंकट में डाल दे की कब वो देशभक्त हो जाये और कब उसका एक लाइक पकिस्तान जाने की उद्घषणा कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता । कुछ लाईके आपको जवां मर्द बना सकता है अगर उसमे उंगली काँपी तो आप किस श्रेणी में रखे जाएंगे यह आप सोच ले। वैसे भी कम्पन कमजोरी की निशानी है। ये पेज देखकर तो अब बस यही लगता आप समय के साथ विचार और धारणाये नहीं बना सकते अब जो है वही है।
        फुर्सत के क्षणों में जब आप इन पेजो से गुजरते है तो वाकई क्षण गंभीर  होता है । कभी देशभक्ति की हिलोडे मन में डोलने लगता है तो अगले क्षण पेज पर लिखे वाकये सोचने पर मजबूर कर देता की शायद कही मेरी उंगली इस ढेंगे पर ठिठक गया तो लोग मुझे कही और मुल्क जाने की फरमान वही से न जारी कर दे। इसी बीच बीच बहुत सारे लिंक्स की आपको जानकारी ये देते है जैसे कोर्ट में वकील अपने पक्ष में गवाह बुलाते है ये लिंक्स अंतर्जाल में घिरा फेसबुकी देश में गवाह लगते है। लेकिन कुछ भी कहे ये फैन्स क्लब वाले बहुत ही सजग और सचेत रहते है। इनकी बुद्धिमता और नित्य नए विचार की मर्मज्ञता काबिले तारीफ होती है। कितना मनन और चिंतन एक दूसरे की काट में करने पड़ते है इसका जबाब तो बस इन्ही के पास है। हम तो शायद बेकार ही आलोचना में लगे है। ये नए युग के धर्म प्रचारक और समाज सुधार के अग्र दूत है। आई ऍम विथ------इस पेज को लाइक करे।।।

Friday, 3 February 2017

बाबन इमली ......भूलते अतीत

           
       कभी कभी आप अचानक इतिहास से टकरा जाते है।यूं ही आज अकस्मात ऐसा संयोग हो गया। हम जहाँ खड़े थे वो जगह विल्कुल उपेक्षित और अपनों के बीच अपरचित सा लग रहा था। इतिहास के दृष्टि से वो  भारत का कोई प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास न होकर आधुनिक भारत के इतिहास से सम्बन्ध रखता है। जो की भारत के स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपर्ण पन्ना हो । ऐसे लगा जैसे किताब जिसके हर पन्नो पर धूल ने अपना कब्ज़ा   जमा रखा  और पन्नो पर अंकित स्याहियां अपने अस्तित्व के लिए  संघर्षरत है । जर्जर पन्ने अपनी या वर्तमान किसकी स्थिति को बयां कर रहा है पता नहीं।  है।यह सिर्फ यहाँ नहीं देश में अलग अलग जगहों में अनेकों है जिसे शायद भुला दिया गया। क्योकि ये सिर्फ शहीद देशभक्त थे जो इतिहासकार के धारा से परे थे और किसी विचारधारा के संभवतः नहीं रहे होंगे। तभी तो इतिहास के गायको ने उनके लिए वो लय और ताल नहीं दिया जिसके वो पात्र है।आज उसी मुहाने खड़ा हूँ जहाँ बस गुमनामी में खो गए इतिहास के उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा सिर्फ यह दर्शाता है  की कुछ नामो को छोड़ हमने क्रांतिकारियों के प्रति उदासीन सी औपचारिकता निभाते आ रहे  है।

                     यह स्थान उत्तर प्रदेश राज्य अंतर्गत फतेहपुर से कोई लगभग 25 कि मी दूर बिंदकी नामक कस्बे के पास है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नो में यह "बाबन इमली" के नाम से अंकित है। भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में फतेहपुर के भी कई वीर सेनानियों ने प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी शासन से लोहा लिया। जिनका नेतृत्व बिंदकी ग्राम के जोधा सिंह अटैया ने किया था। जब ब्रिटिश सेना ने जोधा सिंह अटैया को बंदी बना लिया तो उनके साथ साथ अन्य 51 गुमनाम स्वतंत्रा सेनानियों को एक साथ 28 अप्रैल 1858 को एक इमली के पेड़ पर लटका कर फांसी दे दिया था तथा कई दिनों तक शवो को उसपर लटकता हुआ छोड़ दिया। यह स्थान तब से बाबन इमली के नाम से प्रषिद्ध है।
                    यह इमली का पेड़ अब भी मौजूद है और उस क्रूर आख्यान को अपने जीर्ण-शीर्ण अवस्था में बयां कर रहा है। जंगलो के बीच ख़ामोशी से घिरा यह स्थान बगल से गुजरते मेनरोड पर भी अपनी उपस्थिति नहीं दर्शा पा रहा। अंदर स्मारक स्वरूप बने कुछ संरचना हमारे शहीदों के प्रति सम्मान और उपेक्षा को एक साथ दर्शाता है। वन विभाग के अंतर्गत वर्तमान का यह ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम का धरोहर शायद इसी की तरह अपने अस्तित्व से झूझ रहा है। जो समाज अपने इतिहास के प्रति सजग और संवेदशील न हो तो वो वर्तमान को खोखला करता है और भविष्य उनको दोहराये इसकी सम्भावना सदैब रहता है।
               इस के पास आने से इस सुनसान स्थान पर  खामोशिया चित्कारती हुई लगती है और सम्भवतः वर्तमान  का उपेक्षा सूखती हुई इस पेड़ हमारे शुष्क हृदय को दर्शा रहा हो।ऐसा लगता है जैसे यह इमली का पेड़ उन लटकते शहीद को बोझ से न सूखकर, खुली हवा में सांस लेने वाले आज की उदासीनता के मायूसी से गल रही है।  न जाने कितने ऐसे पेड़ देश में अब भी इसका गवाह बन अस्तित्व ही में न हो।
                   अगर आप अपने स्वतंत्रता संग्राम के इन गुमनाम देशभक्तो से एकाकार हो उस वक्त को आत्मसात करना चाहते हो या इतिहास प्रेमी हो तो आप फतेहपुर की इस ऐतिहासिक "बाबन इमली" को देखने आ सकते है।

Wednesday, 1 February 2017

माँ वीणा वादिनी ......बसंत पंचमी कि शुभकामना



आखर शब्द सब गूंज रहे है
अर्थ नए नित ढूंढ रहे है
सकल धरा पे अकुलाहट है
क्रन्दन से कण-कण व्यथित है ।।

मनुज सकल सब सूर रूप धर
असुर ज्ञान से कातर लतपथ
गरल घुला इस मधुर चमन में
घायल मलिन ज्ञान रश्मि रथ।।

ऐसा वीणा तान तू छेड़ दे
मधुर सरस जो मन को कर दे 
मानवता का अर्थ ही सत्य हो
ज्ञान दिव्य ऐसा तू भर दे ।।

हे माँ वीणा वादिनी फिर से
ऐसा सकल मंगल तू कर दे
मानस चक्षु पे तमस जो छाया
नव किरण से आलोकित कर दे ।।

हे माँ विणा वादिनी वर दे ।।।
हे माँ वीणा वादिनी वर दे ।।।