Sunday 11 May 2014

शो जारी है......


वन मैन शो 

वृत्त चित्र 
                        राज साहब कि फ़िल्म "मेरा नाम जोकर" का  यह संवाद  "द शो मस्ट गो औन " लोकतंत्र के महापर्व को चरितार्थ कर रह है। बिभिन्न शो में फिल्म देखने के आदि  जनता अब पूर्ण  रुप से सामान्यतः पांच वर्ष मे बनने वाली फ़िल्म के क्लीमेक्स मे शो के अलग-अलग अंदाज का मजा लेने मे लगे हुयें  है। पहले हकीकत को पर्दे पर उतारने कि दुहाई फिल्मकार देते थे ,किन्तु अब राजनीती के  मजे  निर्देशकों ने पुरे फ़िल्मी दुनिया को जैसे हकीकत के जमीं पर उतार दिया है।मैटनि शो ,नून शो ,इवनिंग शो से लेकर रात्रि शो का  विषेश  प्रसारन अब अन्तिम चरन मे आ गया है। प्रतिबद्ध रचनाकारों कि अलग-अलग टोली अपनी क्रियात्मक कार्य -कलापों से वास्तविक जमींन के उपर न जाने कितने विभिन्न प्रकार के क्षद्म और आभासी  स्टेज़ बना रखे है।इन फिल्मकारों को गुमान है की जिसके सामने बैठ कर दर्शक हकीकत के  सिसकते स्वर सरगम  के उपर भी सुरीली बांसुरी सा लुफ्त लेंगे। जहाँ जनता दर्शक भर बन कर "टैग लाइन" वाले संवादों पर तालिया बजाते है और मुख्य किरदार उन तालियों के आवांज को अपनी सस्तुति समझ कर स्वतः अपना  पीठ ठोंकने में लगे हुये है। जिन संवादों के ऊपर सेंसर बोर्ड अब तक बैन लगाते आये  है उन सैंसर बोर्ड को अब फिल्मकार कि दलील भविष्य मे बैन लगाते वक्त  अवश्य सुनना पड़ेगा। क्योंकि इस शो में संवाद अदायगी के दौरान  कोइ भी रि-टेक नहि लिया  जा रहा है।आपत्ति और अनापत्ति के बीच फ़िर उससे भी दोहरी मारक क्षमता वाले संवादों का  प्रयोग बदसूरत ज़ारी है। 

प्रायोजित फ़िल्म 
                    अब जनतंत्र मे लोक चुनाव एक समान्य प्रक्रिया  भर नही  रह गया है। अलग-अलग राजनीतिक दल "राम गोपाल वर्मा की फैक्ट्री " जैसे प्रोडक्शन हाउस बन गए है। जहाँ अब सब कुछ वास्तविकता से कोसों दुर शिल्पकारों की  रचना के अनुरुप बस अभिनय करते प्रतीत हो रहे है। कई बार लो बजट की भी फ़िल्म सुपर-डुपर हिट  हो जाती है ,वैसे हि अलग-अलग जगह से लो बजट के  कईं नये राजनीतीक रचनाकार अपना  उत्पाद भी ज़नता के सामने परोसने मे लगे है। आखिर जनता तो जनार्दन है जाने क्या पसन्द आ जाये। किसकी किस्मत का पिटारा बॉक्स ओफ़िस पर खुल जाये ये कौन जानता है ? प्रकाश झा को अवश्य हि इस सत्य का  भान हुआ होंगा की राजनीति पर फ़िल्म बनाने से बेहतर तो फिल्मो जैसी राजनीति है। जहाँ एक बार दाव  लग गया तो पाँच साल के लिये बॉक्स ऑफिस पर हिट। जैसे बाहु-बली चुनाव मे मदद करते-करते खुद ज़नता की मदद करने सब कुछ त्याग कर आ सकते है तो "पंच लाईन " के रचनाकार अपनी रचनाधर्मिता का उपयोग जनता की सेवा मे क्यों नहि कर सकते ?

फिल्म कि सफलता … बस 
                                  आखिर इस शो मे ऐसा कौन सा तत्व नहीं है जो इसे जनता के बीच लोकप्रिय न  बनाये। नायक ,खलनायक ,नायिका ,सह-कलाकार ,जूनियर आर्टिस्ट ,संगीतकार,गीतकार ,सँवाद लेखक से लेकर मंच सज्जा और न जाने क्या -क्या सब इस शो को सफल बनाने मे लगे हुये है।विदूषकों कि टोलियां अपने मसखरेपन पूरी वयवस्था के बदलते मायने को अपने अंदाज मे समझाने मे लगे है। किन्तु जनता किसके शो से सबसे ज्यादा खुश है ये तो आने वाला समय ही  बताएगा ,जब बोक्स ऑफिस के पिटारे को १६ मई को खोला जाएगा।
                              
                             जनता भी अब मसहूस करने लगी है ,परिवर्तन की सब बाते बस दंगल के पेंच है स्थिति तो जस का तस ही बना  रहता  है ,चलो इस से मनोरंजन कर कुछ तो मन बहलाया जाय। हकीकत से कोसो दूर ये कलाकार अब बस सभी को सब्जबाग हि दिखा  रहे है। जैसे दावे और प्रतिदावे न होकर क़ादर खान के संवाद वाले नौटंकी चल रहा हो । कुछ आस्था के भग्नावेश पर नौलक्खा इमारत गढने कि तागिद कर रहे  तो ,कुछ ने सपने कैसे देखने  है इन सपनो को देख़ने कि सपनें दिखा  रहे है।कुलबुलाहट के बीच पनपने वाली जिंदगी इन सब नजारो को देख कर बस मन मसोस कर रह जाती और वास्तविकता से इतर अब सिर्फ़ मन बहलाने का बहाना ही इन प्रायोजित कार्यक्रमो में  देख कर किसी नये स्र्किप्ट लेखक का इन्तजार करने लगती है।अब जनता वोटर न होकर बस दर्शक दीर्घा से दर्शक बन  सब देखने को मजबूर है, उसे इस बॉक्स ऑफिस मे टिकट गिराने की बेवसी को समझना शायद कुछ कठीन है । वोट की कीमत कितनी है समझाने मे करोड़ लगाने ,उस वोटर को पोलिंग बूथ तक लाने मे बेहिसाब खर्च करने वाले के लिये जमीनी सच्चाई को समझने मे और उसके उपदान के लिये उसका एक भाग भी यदि  मनोयोग से जनता के कल्याण को लगाने को इच्छुक  दीखते तो संभवतः इस शो को बॉक्स ऑफिस मिले सफलता की संगीत कि गूंज  आमजन के दिल मे बजता और इससे अजीज ज़नता कहता " शो अवश्य जारी रहे "।  (सभी चित्र गूगल साभार ) 

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यारा सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अब वही १६ का इंतज़ार है. देखें क्या है पिटारे में .

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  3. किसका रोड शो हिट रहा यह तो 16 को ही पता चलेगा .....

    RECENT POST आम बस तुम आम हो

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  4. लोकतंत्र के महापर्व में जनता को सब्जबाग दिखाने वाले कुछ ठोस काम भी करें तो बेहतर.

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  5. फर्क इतना है की इस पिक्चर के नतीजे किसी के हाथ में नहीं सिवाए जनता के ... और वो भी खेल चुकी है अपना कार्ड ...

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  6. सच कहा आपने हर राजनीतिक दल राम गोपाल वर्मा क़ी फैक्टरी हो गयीं है ....

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  7. खेल ही बनकर रह गए हैं चुनावी दावपेंच ....प्रभावी विवेचन

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  8. सोलह मई का पिटारा खुल चुका है..और नरेन्द्र मोदी बॉक्स ऑफिस के रजनीकांत साबित हुए हैं..सुंदर प्रस्तुति।

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