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Monday, 20 January 2020

नए अध्यक्ष ...त्वरित टिप्पणी

            जब प्रधानमंत्रीजी छात्रों को परीक्षा के टिप्स बांट रहे थे उस समय नड्डा जी अध्यक्ष के छात्र रूप में चुन लिए गए। परीक्षा तो अब इनकी कक्षा में कई होने लेकिन अगला पेपर बहुत जल्दी दिल्ली में होने वाला है। इनकी तैयारी का जायजा उसके बाद ही लिया जाएगा। कल आज और कल के कई मार्गदर्शक अलग अलग भाव भंगिमा में लिए नए अध्यक्ष को शुभकामनाएं देने कर्तव्यानुसार उपस्थित हो गए। नड्डा जी वैसे तो हिमाचली है लेकिन बिहारीपन ज्यादा है।

     वैसे नड्डा जी ने अपना भाषण समाप्त करते हुए सिर्फ "जय भारत" का उद्घोष किया। जबकि उनके पूर्ववर्ती सदा की भांति भारत माता की जय और अंत मे वंदे मातरम के साथ अपना उद्घोष समाप्त किया। नड्डा जी की इस "जय भारत"  सांकेतिक उद्घोषणा सामान्य माना जाय या अपने कार्यकाल में वो पार्टी के सिलेबस में कोई बदलाव की तैयारी है।इस पर राजनीतिक विश्लेषक चिंतन की नई लकीर खिंच सकते है।
         वैसे उनके पूर्ववर्ती ने जो लकीर खिंच दी है,उससे बड़ी लकीर खीचना वाकई में नड्डा जी के लिए एक दुरूह कार्य होगा। लेकिन अब जब उन्होंने ये दायित्व लिया है तो अवश्य उसके लिए प्रयत्नशील रहेंगे।...नड्डा जी को अध्यक्ष चुने जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।।

Saturday, 18 January 2020

मुद्दें.....

                        मुद्दों में मुद्दा इतना ही है कि देश मे मुद्दों की कमी नही है। हम तो इसी मुद्दों पर लड़ रहे थे। अब ये भी कोई बात है कि आप मुद्दों का ट्रैक ही चेंज कर दे। किसी दौड़ में अगर कोई अपना लेन बदल देता है तो उसे डिसक्वालिफाई कर देते है। अब यहाँ सरकार की कोई नैतिकता ही नही है। मुद्दों का पूरा ट्रेक बदल दिया। आखिर देश में अब तक गरीबी हटाओ, बेरोजगारी भगाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ, महगाई डायन मारो और पिछले कुछ वर्षों से राम मंदिर बनाना है, पाकिस्तान को सीखना है, इस मुद्दों पर ही चुनाव होता आया है।अब आपने ये क्या उसमे एन आर सी, सी ए ए जैसे मुद्दों को जबरदस्ती घुसा दिया है।अब यार भोली जनता पर भी रहम करो। आखिर जनता का टास्क तो बढ़ गया। इस तरह  अगर मुद्दों की फेहरिस्त बढ़ती जाएगी तो जो जनता पहले से मुद्दों के बोझ तले दबे हुए है,वो और भार कैसे उठाएंगे..?इसलिए तो हम साफ-साफ कह रहे है कि ये जो नए मुद्दे आपने भोली-भाली जनता के ऊपर एन आर सी और सी ए ए का डाल दिया है। उसे वापस ले ले। हम वही पुराने सास्वत मुद्दे को ही रहने दे। आखिर सरकार ही तो बनाना है, बाकी तो देश पहले भी चल रहे थे और आगे भी चलेंगे।लेकिन जो सरकार मुद्दों की सास्वतता को जड़ से मिटाने का प्रयास करे तो वो जनता के साथ सही में अन्याय करती है। पुराने मुद्दों के खत्म होने से नए मुद्दों को ढूंढना भी तो एक दुरुह काम है और फिर उसके बारे में जनता को बताना तो उससे भी कठिन। फिर बेचारी भोली-भाली जनता आखिर अपने दिनचर्या में ऐसे दबा हुआ है। फिर वो कैसे समय निकाल कर इन नए मुद्दों पर अपनी राय को कायम करे । बेशक भ्रष्टाचार कुछ कम होने की खबर हो और राम मंदिर भी न्यायालय द्वारा सुलझ गए हो। फिर भी पुराने मुद्दे कई है, आप ये नए मुद्दे उछाल कर, पार्टी तो गोते लगा ही रही है, जनता को क्यो उछालने में लगे हो...?

Sunday, 11 May 2014

शो जारी है......


वन मैन शो 

वृत्त चित्र 
                        राज साहब कि फ़िल्म "मेरा नाम जोकर" का  यह संवाद  "द शो मस्ट गो औन " लोकतंत्र के महापर्व को चरितार्थ कर रह है। बिभिन्न शो में फिल्म देखने के आदि  जनता अब पूर्ण  रुप से सामान्यतः पांच वर्ष मे बनने वाली फ़िल्म के क्लीमेक्स मे शो के अलग-अलग अंदाज का मजा लेने मे लगे हुयें  है। पहले हकीकत को पर्दे पर उतारने कि दुहाई फिल्मकार देते थे ,किन्तु अब राजनीती के  मजे  निर्देशकों ने पुरे फ़िल्मी दुनिया को जैसे हकीकत के जमीं पर उतार दिया है।मैटनि शो ,नून शो ,इवनिंग शो से लेकर रात्रि शो का  विषेश  प्रसारन अब अन्तिम चरन मे आ गया है। प्रतिबद्ध रचनाकारों कि अलग-अलग टोली अपनी क्रियात्मक कार्य -कलापों से वास्तविक जमींन के उपर न जाने कितने विभिन्न प्रकार के क्षद्म और आभासी  स्टेज़ बना रखे है।इन फिल्मकारों को गुमान है की जिसके सामने बैठ कर दर्शक हकीकत के  सिसकते स्वर सरगम  के उपर भी सुरीली बांसुरी सा लुफ्त लेंगे। जहाँ जनता दर्शक भर बन कर "टैग लाइन" वाले संवादों पर तालिया बजाते है और मुख्य किरदार उन तालियों के आवांज को अपनी सस्तुति समझ कर स्वतः अपना  पीठ ठोंकने में लगे हुये है। जिन संवादों के ऊपर सेंसर बोर्ड अब तक बैन लगाते आये  है उन सैंसर बोर्ड को अब फिल्मकार कि दलील भविष्य मे बैन लगाते वक्त  अवश्य सुनना पड़ेगा। क्योंकि इस शो में संवाद अदायगी के दौरान  कोइ भी रि-टेक नहि लिया  जा रहा है।आपत्ति और अनापत्ति के बीच फ़िर उससे भी दोहरी मारक क्षमता वाले संवादों का  प्रयोग बदसूरत ज़ारी है। 

प्रायोजित फ़िल्म 
                    अब जनतंत्र मे लोक चुनाव एक समान्य प्रक्रिया  भर नही  रह गया है। अलग-अलग राजनीतिक दल "राम गोपाल वर्मा की फैक्ट्री " जैसे प्रोडक्शन हाउस बन गए है। जहाँ अब सब कुछ वास्तविकता से कोसों दुर शिल्पकारों की  रचना के अनुरुप बस अभिनय करते प्रतीत हो रहे है। कई बार लो बजट की भी फ़िल्म सुपर-डुपर हिट  हो जाती है ,वैसे हि अलग-अलग जगह से लो बजट के  कईं नये राजनीतीक रचनाकार अपना  उत्पाद भी ज़नता के सामने परोसने मे लगे है। आखिर जनता तो जनार्दन है जाने क्या पसन्द आ जाये। किसकी किस्मत का पिटारा बॉक्स ओफ़िस पर खुल जाये ये कौन जानता है ? प्रकाश झा को अवश्य हि इस सत्य का  भान हुआ होंगा की राजनीति पर फ़िल्म बनाने से बेहतर तो फिल्मो जैसी राजनीति है। जहाँ एक बार दाव  लग गया तो पाँच साल के लिये बॉक्स ऑफिस पर हिट। जैसे बाहु-बली चुनाव मे मदद करते-करते खुद ज़नता की मदद करने सब कुछ त्याग कर आ सकते है तो "पंच लाईन " के रचनाकार अपनी रचनाधर्मिता का उपयोग जनता की सेवा मे क्यों नहि कर सकते ?

फिल्म कि सफलता … बस 
                                  आखिर इस शो मे ऐसा कौन सा तत्व नहीं है जो इसे जनता के बीच लोकप्रिय न  बनाये। नायक ,खलनायक ,नायिका ,सह-कलाकार ,जूनियर आर्टिस्ट ,संगीतकार,गीतकार ,सँवाद लेखक से लेकर मंच सज्जा और न जाने क्या -क्या सब इस शो को सफल बनाने मे लगे हुये है।विदूषकों कि टोलियां अपने मसखरेपन पूरी वयवस्था के बदलते मायने को अपने अंदाज मे समझाने मे लगे है। किन्तु जनता किसके शो से सबसे ज्यादा खुश है ये तो आने वाला समय ही  बताएगा ,जब बोक्स ऑफिस के पिटारे को १६ मई को खोला जाएगा।
                              
                             जनता भी अब मसहूस करने लगी है ,परिवर्तन की सब बाते बस दंगल के पेंच है स्थिति तो जस का तस ही बना  रहता  है ,चलो इस से मनोरंजन कर कुछ तो मन बहलाया जाय। हकीकत से कोसो दूर ये कलाकार अब बस सभी को सब्जबाग हि दिखा  रहे है। जैसे दावे और प्रतिदावे न होकर क़ादर खान के संवाद वाले नौटंकी चल रहा हो । कुछ आस्था के भग्नावेश पर नौलक्खा इमारत गढने कि तागिद कर रहे  तो ,कुछ ने सपने कैसे देखने  है इन सपनो को देख़ने कि सपनें दिखा  रहे है।कुलबुलाहट के बीच पनपने वाली जिंदगी इन सब नजारो को देख कर बस मन मसोस कर रह जाती और वास्तविकता से इतर अब सिर्फ़ मन बहलाने का बहाना ही इन प्रायोजित कार्यक्रमो में  देख कर किसी नये स्र्किप्ट लेखक का इन्तजार करने लगती है।अब जनता वोटर न होकर बस दर्शक दीर्घा से दर्शक बन  सब देखने को मजबूर है, उसे इस बॉक्स ऑफिस मे टिकट गिराने की बेवसी को समझना शायद कुछ कठीन है । वोट की कीमत कितनी है समझाने मे करोड़ लगाने ,उस वोटर को पोलिंग बूथ तक लाने मे बेहिसाब खर्च करने वाले के लिये जमीनी सच्चाई को समझने मे और उसके उपदान के लिये उसका एक भाग भी यदि  मनोयोग से जनता के कल्याण को लगाने को इच्छुक  दीखते तो संभवतः इस शो को बॉक्स ऑफिस मिले सफलता की संगीत कि गूंज  आमजन के दिल मे बजता और इससे अजीज ज़नता कहता " शो अवश्य जारी रहे "।  (सभी चित्र गूगल साभार ) 

Monday, 28 April 2014

बदलते पैमाने

रौंद कर सब शब्द 
उससे गुजर गए,
कुछ दिल को भेद
कुछः ऊपर से निकल गए। 
अलग-अलग करना 
अब मुश्किल है, 
जिंदगी जहर बन गया 
नहीं तो जहर जिंदगी मे घुल गये। 
लानत और जिल्लत के बीच
वो खुद को ढूढ़ रहा था,
जलालत की सब बातें जब से
इंसानी सरोकारों में मिल गए।
सबने चिंता दिखाया 
कल के लिये सब बैचेन दिखे,
कुछ को देश निकाला मिला तो 
कुछ को समुन्दर मे डुबों दिये।
बदलेगा क्या 
ये तो वक्त बताएगा, 
किन्तु सब भाव अब 
वोट के कीमत मे सिमट  गये। 
जो जरिया है और   
तरक्की का पैमाना है बना,  
उस लोकतंत्र में चुनाव ने  
सारे पैमाने बदल दिये। ।    

Saturday, 1 March 2014

बदलाव की बयार

                                 वक्त वाकई काफी ताकतवर होता है। इसमें किसी को कोई शक संदेह नहीं।जनता को भी वक्त, क्रमिक चक्र कि भाँति घूम -घूम कर प्रत्येक पांच साल बाद  अपने  आपको याचक नहीं बल्कि दाता के रूप में देखने का सौभाग्य देता है।  जहाँ जनता की ताज पोशी जनार्दन के रूप में की  जाती है। अपने भाग्य को कोसने वाले ओरों की तक़दीर बदलने को तैयार है। अभी आने वाले कुछ महीने में न जाने किनका किनका वक्त बदलने वाला है। पश्चिम वाले कहते है पूर्व कि ओर देखो और अपने यहाँ लोग गाँव कि ओर देख रहे है। गाँव से हमें कितना प्यार है ये तो इसी से जाहिर होता है कि अभी तक हमने बहुत सारे बदलाव उसमे गुंजाईश के बाद भी नहीं होने दिया।  हमारे गावों में  समझदार बसते है,बेसक शिक्षितों में वो इजाफा न हुआ जो कि कागज़ को काला कर सके । उनके समझदारी के ऊपर बड़े -बड़े बुद्धूजीवी भी हतप्रभ रह जाते है। दिमाग नहीं दिल से फैसला देते है। गाँव की  उर्वरक मिट्टी पोषित कर सभी के ह्रदय को विशाल बना देता है। इसलिए छोटी -छोटी बातों पर  गाँव वाले  दिमाग कि जगह   दिल को  तव्वजो देते है।बाकी जो  शहर से  आते है पता नहीं ? बुद्धिजीवी लोग रहते  है  जो हमेशा दिमाग की  ही सुनते है। 
                          युवा वर्ग उभर रहा है ,ये देश कि ओर और देश इनकी ओर निहार रहा है बीच में बैठे देश चलाने वाले दोनों  की ओर निहार रहे है। स्वाभाविक रूप से दोनों को एक साथ निहारना कठिन काम है। दोनों ही क्षुब्ध है। लेकिन मनाने का प्रयास चल रहा है। कुछ ही दिनों में दोनों  की तकदीर बदलने वाली है। टकटकी लगाये ये बदलाव कि बयार को कलमबद्ध करने वाले ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस काम के लिए  नियुक्तियां से प्रतिनियुक्तियां किये जा रहे। आखिर हर व्यपार का आपना-अपना मौसम होता है। अब देश  की  जनता जागरूक हो गई है। देखिये अब सीधे मैदान में आ खड़े हुए है। जनता ही लड़ती है और जनता ही लड़ाती है। ये तो अपनी -अपनी किस्मत है कि किसके लिए जनता लड़ती है और किसको जनता लड़ाती है। भाग्य बदलने कि ताबीज सभी ने अपने अपने हाथों में ले रखे है। अब गला इन ताबीज के लिए कौन -कौन बढता है ये तो आने वाला समय ही बतायेगा।
                             देश के  सीमा की रक्षा करते -करते फिर भी मन में संदेह रह गया ,समझने में थोड़ी देरी अवश्य हुई किन्तु अब ज्ञात है कि अंदर ही ज्यादा ताकतवर दुश्मन बैठे है ,देखना है कि कैसे अब इनसे लोहा लिया जाता है। अनेकता में एकता है और एकता में भी अनेकता है ये मिसाल हम सदियों से देते आये है ,बस अब पुनः एक बार दोहराना है। इन दोनों से जिनका चरित्र मेल नहीं खाता है उनका अलग रहना ही ठीक है। उदार मन के स्वामी तो हम सदैव से ही रहे है ये तो अपनी धरोहर  है माफ़ी मांगने और माफ़ी देने की उदार /अनुदार सांस्कृतक विरासत को आखिर विशाल ह्रदय के स्वामी ही आलिंगन कर सकते है। बेसक कुछ लोग पेट कि अंतड़ियां गलने से काल के गाल में समां गए तो उसपर आखिर किसका  वश होगा। "होई है ओहि जो राम रची राखा " इन बातों से हमें शर्मिंदा नहीं होना चाहिए। 
                            आखिर हमने एक नये सुबह का सपना देखा है जहाँ घडी के साइरन बजते ही घर में जल रहे लालटेन कि लौ बुझा कर , कुल्हड़ में चाय पीने के बाद ,हल-बैल को छोड़ जो अभी भी बहुत कम लोगो के पास है ,रिक्शे और साईकिल  पर सवार होकर हाथों में झाड़ू लेकर देश कि हर गंदगी को साफ़ करते हुए बढ़ते जाए ,क्या सुन्दर दृश्य होगा जो इन स्वच्छ राहो पर जण -गण हाथी पर सवार हो हशियाँ -हथोड़ी के साथ काम पर एक नए भारत के निर्माण के लिए निकले  और रास्ते के किनारे -किनारे कीचड़ में उदय हो  रहे कमल नयनाभिराम दृश्य का सृजन कर रहे हो। बदलाव की  बयार है कही सपना हकीकत न बन जाए।