आसमां से परे
एक आसमां की तलाश है,
सुदूर उस पार क्षितिज के
जहा धरती और गगन
मिलने को बेकरार है।
और जो अब तक मिल नहीं पाये
बस और थोड़ा दूर
न जाने अब तक कितने फासले नाप आये
किन्तु फिर भी वही दुरी, पास-पास है।
और इसपर पनपते जीव ने
उस धरती से कांटे नहीं तो
आसमां के शोलो को ही
बस दिल में बसाया है।
हैरत नहीं की उसने भी
इन दोनों के प्यार को बस
छद्म ही पाया है।
प्रतीत होता है और है का अंतर
सबने ज्ञान से अर्जित किया है,
प्रेम की पहली परिभाषा ही
अब यहाँ दूरियों में अर्पित किया है।
जिसको किसी की चाह नहीं
हर किसी ने दुसरो में वही देखा है।
मैं प्रेम का सागर हूँ
बाकी में सिर्फ नफरत की ही रेखा है।
न देखे इस आसमां से बरसते शोलों को
या धरा पर चलते फिरते शूलों को,
चलो इससे परे कोई आसमां ढूंढेंगे
जहाँ धरती गगन एक दूसरे को चूमेंगे। ।
एक आसमां की तलाश है,
सुदूर उस पार क्षितिज के
जहा धरती और गगन
मिलने को बेकरार है।
और जो अब तक मिल नहीं पाये
बस और थोड़ा दूर
न जाने अब तक कितने फासले नाप आये
किन्तु फिर भी वही दुरी, पास-पास है।
और इसपर पनपते जीव ने
उस धरती से कांटे नहीं तो
आसमां के शोलो को ही
बस दिल में बसाया है।
हैरत नहीं की उसने भी
इन दोनों के प्यार को बस
छद्म ही पाया है।
प्रतीत होता है और है का अंतर
सबने ज्ञान से अर्जित किया है,
प्रेम की पहली परिभाषा ही
अब यहाँ दूरियों में अर्पित किया है।
जिसको किसी की चाह नहीं
हर किसी ने दुसरो में वही देखा है।
मैं प्रेम का सागर हूँ
बाकी में सिर्फ नफरत की ही रेखा है।
न देखे इस आसमां से बरसते शोलों को
या धरा पर चलते फिरते शूलों को,
चलो इससे परे कोई आसमां ढूंढेंगे
जहाँ धरती गगन एक दूसरे को चूमेंगे। ।
सुंदर लेखन कौशल भाई धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन वास्तविकता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteमृग मरीचिका की तरह है यह क्षितिज पर धरती और गगन का मिलन। चलो हम भी ढूंढते हैं आपके साथ एक नया आसमाँ।
ReplyDeleteसुंदर रचना कोमल भाव !!
ReplyDeleteहार्दिक आभार...
ReplyDeleteकहाँ होते हैं अनेकों आसमा ... अपनी पसन् अनुसार कहाँ मिलता है सब कुछ ... जो ही उसी को अच्छा बनाना होगा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ....बिच में कुछ भटकाव सा लगा ....पर अंत में सँभालते हुए शानदार लिखा आपने |
ReplyDeleteबहुत सार्थक चिंतन...
ReplyDeleteहैरत नहीं की उसने भी
ReplyDeleteइन दोनों के प्यार को बस
छद्म ही पाया है।......खूबसूरत रचना !
बहुत सुन्दर सृजन, बहुत बधाई
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लोग पर भी आप जैसे गुणीजनो का मर्गदर्शन प्रार्थनीय है