Showing posts with label धरती. Show all posts
Showing posts with label धरती. Show all posts

Sunday, 29 June 2014

आसमां से परे

आसमां से परे
एक आसमां की तलाश है, 
सुदूर उस पार क्षितिज के 
जहा धरती और गगन 
मिलने को बेकरार है।  
और जो अब तक मिल नहीं पाये 
बस और थोड़ा दूर 
न जाने अब तक कितने फासले नाप आये 
किन्तु फिर भी वही  दुरी, पास-पास है।  
और इसपर पनपते जीव ने 
उस धरती से  कांटे नहीं तो 
आसमां के शोलो को ही 
बस दिल में बसाया है। 
हैरत नहीं की उसने भी 
इन दोनों के प्यार को बस 
छद्म ही पाया है। 
प्रतीत होता है और है का अंतर 
सबने ज्ञान से अर्जित किया है, 
प्रेम की पहली परिभाषा ही 
अब यहाँ दूरियों में अर्पित किया है। 
जिसको किसी की चाह नहीं 
हर किसी ने दुसरो में वही देखा है। 
मैं  प्रेम का सागर हूँ 
बाकी में सिर्फ  नफरत की ही रेखा है। 
न देखे इस आसमां से बरसते शोलों को
या धरा पर चलते फिरते शूलों को,  
चलो इससे परे कोई आसमां ढूंढेंगे  
जहाँ धरती गगन एक दूसरे को चूमेंगे। ।