Tuesday 11 October 2016

विजयी कौन .....?

                       बस अब युद्ध अंतिम दौर में है। किसी भी क्षण विजयी दुंदुभि कानो में गूंज सकती है। सभी देवतागण पंक्तिबद्ध हो अपने -अपने हाथो में पुष्प लिए अब भगवान के विजयी वाण के प्रतीक्षा में आतुर दिख रहे है। सभी के मुख पर संतोष की परिछाई दिखाई दे रहा है। अब इस महापापी का अंत निश्चित है। आखिर कब तक महाप्रभु के बाणों से अपनी रक्षा कर पायेगा। काल को अपने कदमो तले दास बनाने वाले को अब सम्भवतः अवश्य ही काल अपने चक्षु से दिख रहा होगा। अहंकार का दर्प अवश्य ही पिघल रहा है। राक्षसों की सेना में भी   मुक्ति की व्याकुलता दिख रही है। वानरों की सेना में असीम उत्साह का संचार एक -एक कर राक्षसों को मुक्ति मार्ग पर प्रस्थान कर रहे है। 
                         महाबली महापराक्रमी रावण रथ पर आरूढ़ आसमान से विभिन्न प्रकार के शस्त्र का प्रहार कर अपने वीरता के  प्रदर्शन में अब भी लगा हुआ है। महाप्रभु राम उसके हर शस्त्र का काट कर उसके साथ कौतुक कर रहे है। किन्तु अब भगवान् के चेहरे पर धारण मंद स्मित रेखा पर खिंचाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। देवतागण भगवान् के मुख पर उभरे इस रेखा को पढ़ कर आनंद और हर्ष से भर गए है। प्रभु राम अपने धनुष की प्रत्यंचा पर वाण धर अब इस कौतुक पर पूर्ण विराम करना चाह रहे है और प्रत्यंचा की तान प्रभु के और समीप खिंचता जा रहा है। प्रत्यंचा की तान से जैसे आसमान में बिजली सी कौंध गई और रण भूमि में दोनों ओर की सेनाओ को लगा जैसे रावण का काल बस उसके नजदीक आ गया। बदलो की टकराहट से पूरा रणक्षेत्र कंपायमान हो गया। दोनों ओर की सेनाये लड़ना भूल जैसे मूक दर्शक हो  महाप्रभु की ओर एकटक देखने लगे। अचानक इस दृश्य को देख देवतागण भी विस्मित से दिखने लगे। हाथो में धारण किये पुष्प इस गर्जन को सुन जैसे प्रभु के ऊपर बरसने को आतुर होने लगे। किन्तु अभिमानी रावण अब भी बेखबर भगवान् के लीलाओ को समझने में अक्षम लग रहा। उसके आँखों पर अभिमान का दर्प राम के देवत्व को देखने में बाधक था। भगवान् की प्रत्यंचा पर धारण वाण बस अपने आपको को भगवान् के तर्जनी और अंगूठे से मुक्त हो इस महापापी को महाप्रस्थान के लिए जैसे आतुर दिख रहा है। इसी क्षण बस राम ने वाण को मुक्त कर दिया। वाण का वेग देख जैसे वायुदेव का  भी सांस थम गया। पुरे रणभूमि में एक स्तब्धता छा गया। जिस क्षण की प्रतीक्षारत  देव ,मानव ,गन्धर्व ,आदि अब तक थे अब वो क्षण बिलकुल नजदीक दिख रहा है। प्रभु के धनुष से निकला वाण द्रुत गति से सीधा जाकर रावण की नाभी में समा गया। आसमान भार मुक्त, किन्तु  महापंडित रावण का भार अब भी पृथ्वी उठाने को तत्पर दिखी। रथ से अलग हो रावण का शरीर अब रण भूमि में चित पड़ गया। 
        यह क्या जोर-जोर की अट्टहास रण भूमि पर पड़े रावण के मुख से आ रहा और अपने बड़े-बड़े नेत्रों से राम को घूरा।  उसका अट्टहास मृत्यु पूर्व अंतिम उद्घोष था या चुनौती देवतागण भी विचारमग्न ,प्रभु के अधर पर स्वभाविक मंद स्मित मुस्कान। रावण अट्टहास करता करता दर्पपूर्ण स्वर में कहा - राम क्या तुमने मुझे सच में परास्त कर दिया ,
राम -रावण क्या अब भी अभिमान नहीं गया। क्या मृत्यु को इतने पास से भी देखने में सक्षम नहीं हो। अहंकार जब नजरो में छा जाता है तो ऐसा ही होता है। 
रावण -अहंकार मेरे शब्दो में नहीं राम तुममे झलक रहा है। रावण कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं हो सकता। राम आज तुमने सिर्फ एक रावण का वध किया है। रावण की इस नाभि में बसे अमृत अभी सूखा कहा है। वह तो बस छिटक कर इसी पृथ्वी पर फ़ैल गया है। राम ये तुम नहीं जानते की तुम एक रावण के कारण कई रावण को जन्म दे दिए। रावण आज भी जिन्दा है और कल भी रहेगा। आने वाले युग में इस रावण की गुणों से युक्त कितने क्षद्म मानव होंगे तुम सोच भी नहीं सकते। चलो माना की तुम भगवान् हो और इस धरती पर अवतरण लिए। किन्तु जब मानव ही  रावण के गुणों से युक्त होगा किस मानव के रूप में आओगे। ये  तो मारीच से भी गुनी होंगे कब राम का रूप धर रावण दहन करेंगे और कब रावण का रूप धर सीता हर ले जाएंगे तुम्हारे देवता को भी समझाना मुश्किल हो जाएगा। हर कोई एक दूसरे को रावण कहेगा खुद को राम कहने वाला शायद ही मिले। यह राम तुम्हारी जीत नहीं हार है। जिस पृथ्वी से पाप मिटाने के लिए तुमने एक रावण का वद्ध किया उस रावण से कई रावण निकलेंगे यह तुम्हारी हार है। राम अभी तक तो तुमने पृथ्वी को  रावण मुक्त किया लेकिन आने वाले समय के लिए भार युक्त कर दिया। अब तो वर्षो यह मानव मेरा गुणगान करेंगे। अपने अंहंकारो की तुष्टि हेतु बस मेरे पुतले पर वाण चलाएंगे। राम मेरा शरीर नहीं मरा है वह तो तुम्हारे वाण से क्षत -विक्षित हो  बिखर गया चारो दिशाओ में। राम विचारो यह तुम्हारी विजय है या पराजय। पुनः अट्टहास जोर और जोर से, चारो दिशाए उन अट्टहास से जैसे कांपने लगा। 
         अचानक जैसे  उसकी तन्द्रा खुली खुद को रावण दहन के भीड़ में घिरा पाया। रावण सामने वाले मैदान में धूं -धूं कर जलने लगा। फटाको की आवाज से कान बंद सा हो गया। लेकिन उसके कानो में अभी भी रावण के प्रश्न  और अट्टहास गूंज रहे , भीड़ मदमस्त है और उसकी नजर राम को तलाश रहा है ।    

(आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामना )

6 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    विजयादशमी की शुभकामनाएँ !

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  2. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डॉ. राम मनोहर लोहिया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  3. सुन्दर विजयादशमी शुभ हो ।

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  4. लगता है जैसे रावण का कहा सच हो गया ... आपने जिस अंदाज़ से बाँधा है जैसे कोई चलचित्र चल रहा हो ... आज के फ्लेश बेक कर के सोचो तो यही हुआ है लगता है ...

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  5. Shrivastav ji kuchh hamara bhi chhap do. free for you.

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