Sunday, 14 May 2017

मातृ दिवस पर कुछ पंक्तियां....।।

कुछ लिखू
पर क्या लिखूं
अक्षरों की दुनिया से जाना
एक दिन तुम्हारे लिए भी है।
पर तुम मेरे लिए
सदैव से वैसे ही हो ,
अक्षरों और शब्दों से परे हो
तुम अर्थ और तात्पर्य से बड़े हो ,
क्षण,पल,अवधि की सीमा
एक दिन में कैसे समायेगा ?
मेरे निर्माण, पोषण और वर्तमान का भाव
बस एक दिन में कैसे आएगा ?
मैं एक दिन में कैसे कहूँ-क्या कह?
मैं हु तब भी तुम हो
मैं नहीं हूँ तब भी तुम हो ।
मेरी सृष्टि की रचैयित तुम
तुम ही पालनकर्ता
मेरी जीवन की धुरी तुम
तुम ही मेरे परिक्रमा की कक्षा हो ।
शब्दो की क्षमता नहीं
मेरे भाव को समेट सके
व्योम की सीमाहीन अनंत सी
कैसे तुम्हे समझ सके।
जीवन के प्यास में
अमृत की धार हो
बस और क्या कहे
संपूर्ण जीवन की सार हो।
क्या कहूँ मै ?
बहुत कुछ है पर पता नहीं
क्या कहूँ मैं ?

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