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Monday, 23 December 2013

तन्द्रा

कुछ-कुछ हवा सख्त थी 
बेचैन अनगिनत कुंठाओ से 
तन्द्रा टूट सी गई ,
मूक जिव्हाओ ने 
चोंगाओ से गठबंधन कर 
हाहाकार चहुँ ओर व्याप्त किया ,  
खरखराते पत्तियां टूट-टूट 
जलने को एक जगह इक्कठ्ठा हो आये , 
ओह अब ये जल पड़ेगा 
कोठीओ के झरोखों तक 
इसका ताप पहुचेगा ,
बड़े सूखे-सूखे से है ये पड़े 
चिंगारिओ को और क्या हवा देगा। 

गीले हरे लट -पट अधर 
नजर में श्रृंगाल सा सगल ,
क्या सपनो का बाज़ार 
थम सा गया है 
टूटी क्यों तन्द्रा आज 
कही कुछ कम सा गया है ,
सपनो को हकीकत से क्या लेना ,
क्या है इनका जो पाना चाहे 
सब छोड़ ये जलना चाहे ,
अब और सब्र न कराना है 
कोई नया ख्वाब दिखाना है।  

चलो एक बौछार छोड़ो 
गर्म संताप पे कुछ ठंडक घोलो ,
पत्तिया लड़खड़ाती -खड़खड़ाती 
कुछ नर्म झोंका से फरफराया 
उष्ण मन में कुछ शीत का झोंका पाया ,
पुनः तन्द्रा सा सबपे छाया है 
सब बदल गया ऐसा ही माहौल बनाया है ,
जब तक ये ठंडक है 
बैचैन होने का कोई कारण नहीं ,
तंद्रा फिर से छाने लगा है 
जगे-जगे से सोये 
फिर सब नजर आने लगा है। । 

Saturday, 14 December 2013

अपने-अपने पैमाने

                               हमने अपने-अपने तराजू बना रखे है। पैमाना भी सबका अपना -अपना है। मानव इतिहास को छोड़ अपने देश के  ही इतिहास कि बात करे तो बाकई हम अद्भुत दौर में है। ग्लोबल विश्व कि अवधारणा अब डी -ग्लोबलाइज की तरफ है या नहीं ये तो कहना मेरे लिए जरा  मुश्किल है किन्तु लगता है शासन व्यवस्था का विकेंद्रीकरण में अब ज्यादा समय नहीं है।  अब  कुछ लोगो के  समूह द्वारा  अपने अपने केंद्र में सभी को स्थापित कर अपने-अपने शासन को सुचारु रूप से चलाएंगे ,ऐसा सराहणीय  प्रयास जारी है में है। हर किसी को अधिकार चाहिए। लेकिन कौन किससे  मांग रहा है या कौन किसको देने कि स्थिति में है ये पूरा परिदृश्य साफ़ नहीं हो पा रहा है 
                               जनता को स्वक्छ शासन चाहिए था। सभी ने उनसे अपना वोट माँगा। दिलदार जनता दिल खोल के अपने वोटो का दान भी किया। किन्तु अभी भी कुछ लोगो को संदेह था कि वाकई में कौन ज्यादा स्वक्छ है ,सभी के अपने-अपने पैमाने जो है। दुर्भागयवश वोटो के दान दिए हुए जनता को अब अपने लिए सरकार कि मांग करनी पर रही है। सभी दिलदार हो गए सभी देने के लिए तैयार किन्तु शासन अपने हाथ में लेने को तैयार नहीं। वाकई भारतीय राजनीति का स्वर्ण युग। जनता कि सेवा के लिए सभी भावो से निर्लिप्त बुध्त्व कि ओर अग्रसर। अब देखना बाकी है कि मिल बाट  कर सेवा कर जनता को कुछ देते है या पुनः उनसे मांगने निकल पड़ते। 
                                  अभी तक अल्पसंख्यको से तो बस धर्म या जाती विशेष में ही बटें लोगो कि जानकारी थी। किन्तु अब एक नया वर्ग उभर कर आ गया। बस साथ -साथ रहने कि ही बातें तो कर रहे ?पता नहीं ये अनुच्छेद ३७७ क्या कहता है। सरकार के  मुखिया का दिल भी  द्रवित हुआ जा रहा है आखिर दकियानुसी लोगो के पैमाने पर इन्हे क्यों तौले । पता नहीं कानून बंनाने वाले इस धारणा  पर कैसे पहुचे होंगे कि ऐसे वर्ग अपनी पैठ बनाएगा जो इतने सालो पहले ही इसे अपराध घोषित कर दिया। प्रेम हर धारणा  को तोड़ सकता है ऐसी धारणा  क्यों नहीं कायम कर पाये। अवश्य पैमाने कि गडबडी है।ऐसे समय में जब मानव समुदाय में प्रेम बढ़ाने  की जरुरत है लोग प्रेम करने वाले को दूर करने में लगे है। 
                                   शायद लगभग  ३२  प्रतिशत से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय माप-दंड के अनुसार गरीबी देश में छाई है ,अपने राष्ट्रीय पैमाने पर ये आंकड़ा लगभग २९.८ प्रतिशत अपने खुद के बनाये रेखा से निचे है। इनका भी अपना वर्ग विशेष समूह है। इनको समय -समय पर सम्बोधित भी किया जाता है। कई बार रेखा को बढ़ाया जाता है तो कई बार उसे घटाया जाता है। आखिर सरकार भी क्या करे जब भी गरीबो क कम दिखने का प्रयास करती है ,गरीबो से प्यार करने वाले दल उनका आकड़ा कम नहीं होने देते। आखिर उनका भी अपना पैमाना है। 
                                ऐसे भी अब विशेष कोई समस्या इस देश में है नहीं। हर जगह उनको दूर करने का प्रयास हो ही रहा है ,किन्तु मिडिया मानने  को तैयार नहीं है और वो भी अपने बनाये पैमाने में उसे उछालते रहती है। आखिर उनका भी कोई वर्ग विशेष है। उनके भी अधिकार है।जनता जो सोई है आखिर उसे जगायेगा कौन ? 
                              फेहरिस्त लम्बी है आप भी अपने पैमाने पर उसे जांच ले  ताकी अपने अधिकार नाप सके।