कुछ-कुछ हवा सख्त थी
बेचैन अनगिनत कुंठाओ से
तन्द्रा टूट सी गई ,
मूक जिव्हाओ ने
चोंगाओ से गठबंधन कर
हाहाकार चहुँ ओर व्याप्त किया ,
खरखराते पत्तियां टूट-टूट
जलने को एक जगह इक्कठ्ठा हो आये ,
ओह अब ये जल पड़ेगा
कोठीओ के झरोखों तक
इसका ताप पहुचेगा ,
बड़े सूखे-सूखे से है ये पड़े
चिंगारिओ को और क्या हवा देगा।
गीले हरे लट -पट अधर
नजर में श्रृंगाल सा सगल ,
क्या सपनो का बाज़ार
थम सा गया है
टूटी क्यों तन्द्रा आज
कही कुछ कम सा गया है ,
सपनो को हकीकत से क्या लेना ,
क्या है इनका जो पाना चाहे
सब छोड़ ये जलना चाहे ,
अब और सब्र न कराना है
कोई नया ख्वाब दिखाना है।
चलो एक बौछार छोड़ो
गर्म संताप पे कुछ ठंडक घोलो ,
पत्तिया लड़खड़ाती -खड़खड़ाती
कुछ नर्म झोंका से फरफराया
उष्ण मन में कुछ शीत का झोंका पाया ,
पुनः तन्द्रा सा सबपे छाया है
सब बदल गया ऐसा ही माहौल बनाया है ,
जब तक ये ठंडक है
बैचैन होने का कोई कारण नहीं ,
तंद्रा फिर से छाने लगा है
जगे-जगे से सोये
फिर सब नजर आने लगा है। ।
बेचैन अनगिनत कुंठाओ से
तन्द्रा टूट सी गई ,
मूक जिव्हाओ ने
चोंगाओ से गठबंधन कर
हाहाकार चहुँ ओर व्याप्त किया ,
खरखराते पत्तियां टूट-टूट
जलने को एक जगह इक्कठ्ठा हो आये ,
ओह अब ये जल पड़ेगा
कोठीओ के झरोखों तक
इसका ताप पहुचेगा ,
बड़े सूखे-सूखे से है ये पड़े
चिंगारिओ को और क्या हवा देगा।
गीले हरे लट -पट अधर
नजर में श्रृंगाल सा सगल ,
क्या सपनो का बाज़ार
थम सा गया है
टूटी क्यों तन्द्रा आज
कही कुछ कम सा गया है ,
सपनो को हकीकत से क्या लेना ,
क्या है इनका जो पाना चाहे
सब छोड़ ये जलना चाहे ,
अब और सब्र न कराना है
कोई नया ख्वाब दिखाना है।
चलो एक बौछार छोड़ो
गर्म संताप पे कुछ ठंडक घोलो ,
पत्तिया लड़खड़ाती -खड़खड़ाती
कुछ नर्म झोंका से फरफराया
उष्ण मन में कुछ शीत का झोंका पाया ,
पुनः तन्द्रा सा सबपे छाया है
सब बदल गया ऐसा ही माहौल बनाया है ,
जब तक ये ठंडक है
बैचैन होने का कोई कारण नहीं ,
तंद्रा फिर से छाने लगा है
जगे-जगे से सोये
फिर सब नजर आने लगा है। ।
सुंदर,भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
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RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
बहुत खूब!
ReplyDeletenc post sr
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