वक्त की आंधी उठती देख
तिनको में था जोश भड़ा ,
अबकी हम न चूकेंगे
है छूना आकाश जरा।
दबे-दबे इन वियावान
कब तक ऐसे रहे पड़े ,
चूस गए जो रस धरा का
देखे कैसे अब वो इसे सहे।
हलके -हलके झोंकों ने
जब भी हमको पुचकारा ,
ऊँचे दीवारो से टकराकर
पाया खुद को वहीँ पड़ा।
है सबका एक दिन यहाँ
ऐसा हम तो सुनते है ,
पाश ह्रदय के नयन में हमको
आज अश्रु से दिखते है।
ओह देखो अब आन पड़ा है
है बिलकुल ही पास खड़ा ,
इन झंझावात के वायुयान से
देखूं अब नया आसमान जरा। ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतिनके का ये जोश है या उसकी चाह ... लगन होगी तो सफलता मिलेगी ...
ReplyDeleteबेहद सुन्दर..रचना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 07/12/2013 को चलो मिलते हैं वहाँ .......( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 054)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
उत्साह से भरी सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर रचना , बधाई
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..
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