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Wednesday, 4 December 2013

तिनके का जोश


वक्त की आंधी उठती देख 
तिनको में था जोश भड़ा ,
अबकी हम न चूकेंगे 
है छूना आकाश जरा। 
दबे-दबे इन वियावान 
कब तक ऐसे रहे पड़े ,
चूस गए जो रस धरा का 
देखे कैसे अब  वो इसे सहे।  
हलके -हलके झोंकों ने 
जब भी हमको पुचकारा ,
ऊँचे दीवारो से टकराकर 
पाया खुद को वहीँ पड़ा।  
है सबका एक दिन यहाँ 
ऐसा हम तो सुनते है ,
पाश ह्रदय के नयन में हमको 
आज अश्रु से दिखते है। 
ओह देखो अब आन पड़ा है 
है बिलकुल ही पास खड़ा ,
इन झंझावात के वायुयान से 
देखूं अब  नया आसमान जरा। ।