वक्त की आंधी उठती देख
तिनको में था जोश भड़ा ,
अबकी हम न चूकेंगे
है छूना आकाश जरा।
दबे-दबे इन वियावान
कब तक ऐसे रहे पड़े ,
चूस गए जो रस धरा का
देखे कैसे अब वो इसे सहे।
हलके -हलके झोंकों ने
जब भी हमको पुचकारा ,
ऊँचे दीवारो से टकराकर
पाया खुद को वहीँ पड़ा।
है सबका एक दिन यहाँ
ऐसा हम तो सुनते है ,
पाश ह्रदय के नयन में हमको
आज अश्रु से दिखते है।
ओह देखो अब आन पड़ा है
है बिलकुल ही पास खड़ा ,
इन झंझावात के वायुयान से
देखूं अब नया आसमान जरा। ।