सुख से ख़ुशी है या ख़ुशी से सुख
इस जीवन में किसकी हो भूख ।
आधार एक दूजे से ऐसे है मिलते
रेत पे लकीर जैसे बनते - मिटते।
खुशियां जीवित मन का उमंग
सुख बनते वस्तु निर्जीव के संग।
कदम-दर-कदम दोनों की आस
उठती है मन में दोनों कि प्यास।
इस मरीचिका को कैसे है समझे
मन कि तरंग यतवत भटके। ।
इस जीवन में किसकी हो भूख ।
आधार एक दूजे से ऐसे है मिलते
रेत पे लकीर जैसे बनते - मिटते।
खुशियां जीवित मन का उमंग
सुख बनते वस्तु निर्जीव के संग।
कदम-दर-कदम दोनों की आस
उठती है मन में दोनों कि प्यास।
इस मरीचिका को कैसे है समझे
मन कि तरंग यतवत भटके। ।
मन के भावों का बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ,ह्रदयस्पर्शी.आभार
ReplyDeleteओह...अद्भुत
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